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________________ आमुख मेरे संपूज्य पिताश्री निहालचन्द्रजी सोगानी, जिनसे अध्यात्मयुगस्रष्टा परम पूज्य सदगुरुदेवश्री कहानजी स्वामीके सभी अनुयायी सुपरिचित है, के स्वर्गारोहण पश्चात जव मेरी मातृश्री श्रीमती अनूपकुंवरको, सत्पुरुपोके प्रति अत्यनुरागी स्व. श्रीमती गुलाववहेनने सोनगढमे, यह जानकारी दी कि उनके पति श्री सोगानीजीके द्वारा समय समय पर मुमुक्षुओको लिखे पत्रो व तत्वचर्चाओमे दिए गए समाधान अध्यात्मनगमे विशिष्ट कोटिके है, अतएव उनका प्रकाशन जहाँ एक ओर उनकी अपने स्वर्गस्थ पतिके प्रति सची लांजलि होगी, वही दूसरी ओर वह, अनेक भव्य जीवोंके लिए एक उपकारभूत निमित्त होगा । यह जानकर मेरी मातृश्रीको अतीव प्रसन्नता हुई । परन्तु ऐसे किसी प्रकाशनके पूर्व पूज्य गुरुदेवश्रीसे अनुमति लेना आवश्यक समझकर उन्होंने पूज्य गुरुदेवश्रीसे तविषयक याचना की, जिसे उन्होने प्रमोद मान्य कर लिया.। तत्पश्चात् मेरी मातृश्रीने पूज्य गुरुदेवश्रीकी सम्मतिसे प्रस्तावित प्रकाश्य सामग्रीके संकलन और सम्पादनका मात् भार माननीय श्री लालचन्द अ. मोदीको सौंपा और उन्हीके विशेष आग्रहभरे अनुरोधको स्वीकार कर माननीय श्री शशीकांत म. शेठ भी इस कार्यमे जुड़े । इन दोनो महानुभावोने श्रीगुरु आज्ञाको शिरोधार्य कर, अथक परिश्रम लेकर, अत्यन्त सावधानी और सूझबूझपूर्वक उक्त प्रकाश्य सामग्रीको संकलित व सम्पादित किया। तत्कालीन जैन समाजमे द्रव्यदृष्टि प्रधानताकी श्री सोगानीजी जैसी प्रखर शैली प्रायः अप्रचलित थी। आगम पाठियोको भी उनकी शैली व कई एक शब्द आपत्तियुक्त लगनेकी सम्भावना थी । अतएव ग्रन्यके तृतीय खण्डमे रखे गए तत्त्वचर्चा विभागके प्रश्नोत्तरीके संदर्भमे न तो श्री सोगानीजीके कथनकी मौलिक प्रखरतामे किसी प्रकारकी न्यूनता आये और न ही पाठकोमे कोई समझ-विपर्यास उत्पन्न हो जाये जिससे वे अपना अहित साध वैठे, इस आशयसे जहाँ जो योग्य हो वहाँ तविषयक स्पष्टता कोष्ठकोमे देना योग्य लगनेसे माननीय श्री शशीभाईजीने वैसी स्पष्टता की । मेरे पिताश्रीसे माननीय श्री शशीभाईजीका अतीव अन्तरंग व घनिष्ट परिचय और साधर्मी वात्सल्यता थी जिसके कारण वे उनके हार्द/अभिप्राय/निरूपणपद्धति/कथन शैलीसे सुपरिचित रहे है । चूंकि मेरे पिताश्रीकी सहज व नपे-तुले शब्दोमे अपनी बात कहनेकी प्रकृति थी जिससे समझ फ़र्क होने अथवा भ्रम फैलनेकी सम्भावनासे वचनेके लिए उन्होने कोष्टकोके माध्यमसे स्पष्टता की । इससे सम्माननीय श्री शशीभाईजीकी
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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