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________________ पूज्य गुरुदेवश्रीके प्रवचन एकदम आत्मा ध्रुव...ध्रुव...ध्रुव, अपरिणामी - निहालभाई कलकत्तावाले कहते थे - ऐसा है । लोगोंको माननेमे नही आता था, लोगोको खबर नही । निहालभाई अजमेरके (रईस) थे । वस्तु एकीला ध्रुव है, अपरिणामी है । द्रव्य, वस्तु अपरिणामी है । पर्याय परिणमती है । द्रव्य, वस्तुको परिणमन कैसा ? ___ यद्यपि उत्पाद और व्ययकर सहित है अर्थात् 'परिणतः' शब्द संस्कृतमे पड़ा है। भाई ! यह तो बादशाहका घर है । साधारण बादशाहके यहाँ भी ठीक होकर जानेका होता है, तो फिर यह तो परमात्मा खुद, तीनलोकका नाथ आत्मा खुद है । एकीला ध्रुव...ध्रुव...ध्रुव है । पर्याय भले ही परिणमनमे हो । लेकिन ध्रुवमे पर्याय नहीं है। यह परमात्म प्रकाश है ! एक समयकी पर्याय परमात्मा नही, यहाँ तो द्रव्य परमात्मा है। यह भाव-अभावसे रहित है। उत्पाद-व्यय सहित है, तो भी द्रव्यार्थिकनयसे उत्पाद-व्यय रहित है । यह आत्मा ध्रुव...ध्रुव एकरूप चिदानन्द है, परिणमन रहित है, एकीला वीर्य पिण्ड प्रभु है । आत्मा एकीला चैतन्य दलरूप है । पूर है, जिसमेसे अनन्त केवलज्ञान चला आवे । आत्मा अर्थात् एकीला आनन्द जो ध्रुव है - वह परिणमन रहित है। ___ द्रव्यार्थिकनय अर्थात् जिसका प्रयोजन एकीला ध्रुवको जाननेका है । जो ज्ञानका पर्याय ध्रुवको जानना चाहता है, यह ध्रुवमें परिणमन नही है । यह आत्मा अनन्तगुणका पिण्ड पड़ा है। निर्मल पर्याय, क्षायिक सम्यक्त्वकी पर्याय, यथाख्यातचारित्रकी पर्याय भी वस्तुमे कहाँ है ? संसारपर्यायका व्यय और कैवल्यका उत्पाद - दोनो ध्रुवमे नहीं है । यह अनादि-अनन्त भगवान अन्तर ध्रुव वस्तुको जिनवरने देहमे रहनेपर भी जान लिया है, ध्रुवको देख लिया है, पूरे द्रव्यको एक समयमें देख लिया है -ऐसा कहते है । यह द्रव्यकी दृष्टि हुई कि द्रव्य सिद्धअवस्थारूप, केवलज्ञानरूप परिणमता है । सिद्धस्वरूपका पिण्ड ही आत्मा है । पर्यायमे सिद्ध होता
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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