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________________ आध्यात्मिक पत्र कलकत्ता २०-२-१९६४ श्री सद्गुरुदेवाय नमः आत्मार्थी शुद्धात्म सत्कार | पत्र मिला ।परम कृपालु गुरुदेवश्रीके मुखारविन्दसे मुझ सम्बन्धी निकले सहज उद्गार आपको अमुक-अमुक स्थानोंके भाईयोंसे ज्ञात हुए सो आप सबने स्वाभाविक प्रसन्नता और उत्साहपूर्वक मुझे लिखे, सो जाने । ___ मुक्तिनाथकी इस दास प्रत्ये सहज कृपादृष्टि इस बातका द्योतक है कि अति उमंगभरी मुक्तिसुन्दरी अप्रतिहतभावे, मुझ कृतकृत्यके साथ, महा आनन्दमयी अस्खलित, परमगाढ़ आलिगनयुक्त रहकर शीघ्रातिशीघ्र कृतकृत्य होना चाहती है। परम पिताश्रीने हम सब पुत्र मण्डलको अटूट लक्ष्मीभण्डार (दृष्टिरूपी चाबी द्वारा खोलकर ) भोग हेतु प्रदान किया है, इसे नित्य भोगो, नित्य भोगो, यह ही भावना है। तीर्थकरयोग सूचित करता है कि सब सज्जन पुत्रगण इस भोगको निःसन्देह भोगते हुए नित्य अमर रहेगे। "स्थानो न क्षायिकभावना, के क्षायोपशमिक तणा नही, स्थानो न उपशमभावना, के उदयभाव तणा नही" "गुण अनन्तके रस सबै, अनुभौ रसके माहि, यातै अनुभौ सारिखौ, और दूसरो नाहि" पृथक्-पृथक् पत्रोकी पहुंच सम्भव नही, अतः सहज मिलनेपर आप उन भाईयोंको मेरा यथायोग्य स्नेह बोल देवें...। सर्व भाईयोके नित्य आनन्दका निरीच्छकपने इच्छुक । मात्र मोक्ष अभिलाषी निहालचन्द्र सोगानी
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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