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________________ उद्रयस्थानोका काल जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपार्धपुद्गल परावर्त प्रमाण है। जो जीव उपशम श्रेणीसे गिरकर पुन अन्तमुहूर्त कालके भीतर उपशमश्रेणी पर चढकर उपशान्तमोही हो जाता है उस जीवके आठ प्रकृतिक उदयस्थानका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है। जो जीव अपार्ध पुद्गल परावर्त कालके प्रारम्भमें उपशान्तमोही और अन्तमे क्षीणमोही हुआ है, उसके आठ प्रकृतिक उदयस्थानका उत्कृष्ट काल कुछ कम अपार्धपुगल परावर्त प्रमाण पाया जाता है। सात प्रकृतिक उदयस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। यद्यपि सात मूल प्रकृतियोका उदय उपशान्तमोह और क्षीणमोह गुणस्थान में होता है। पर सीएमोह गुणस्थानमे न तो मरण ही होता है और न उससे जीवका प्रतिपात ही होता है। ऐसा जीव तीन घाति कर्मों का नाश करके नियमसे सयोगिकेवली हो जाता है। हॉ उपशान्तमोह गुणस्थानमे मरण भी होता है और उससे जीव का प्रतिपात भी होता है, अतः जो जीव एक समय तक उपशान्त मोह गुणस्थानमें रहकर और मरकर दूसरे समयमें अविरतसम्यग्दृष्टि देव हो जाता है उसके सात प्रकृतिक उदयस्थानका जघन्य काल एक समय पाया जाता है। तथा उपशान्तमोह या क्षीणमोह गुणस्थानका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अत सात प्रकृतिक उदयस्थानका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है । चार प्रकृतिक उदयस्थानका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि प्रमाण है। जो जीव सयोगिकेवली होकर एक अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर निर्वाणको प्राप्त हो जाता है उसके चार प्रकृतिक उदयस्थानका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है। तथा पहले हम जो एक प्रकृतिक वन्धस्थानका काल घटित करके वतला आये हैं, वही यहाँ चार प्रकृतिक उदयस्थानका काल
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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