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________________ ८ सप्ततिकप्रकरण छह माह शेष रहने पर पुनः परभवसम्वन्धी आयुका बन्ध करता है तब उसके सात प्रकृतिक बन्धस्थानका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण प्राप्त होता है । छह प्रकृतिक वन्धस्थानका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । यह हम पहले ही बतला ये हैं कि छह प्रकृतिक बन्धस्थानका स्वामी सूक्ष्मसम्पराय संयत जीव होता है, त. उक्त गुणस्थानवाला जो उपशामक जीव उपशमश्रेणी पर चढ़ते समय या उतरते समय एक समयतक सूक्ष्मसग्पराय गुणस्थानमें रहता है और मरकर दूसरे समय में अविरत सम्यग्दृष्टि देव हो जाता है उसके छह प्रकृतिक वन्धस्थानका जघन्यकाल एक समय प्राप्त होता है । तथा छह प्रकृतिक बन्धस्थानका अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उत्कृष्टकाल सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान के उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा कहा है, क्योंकि सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थानका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त होता है । एक प्रकृतिक वन्धस्थान का जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण है । जो उपशमं श्रेणीवाला जीव उपशान्तमोह गुणस्थानमें एक समय तक रहता है और मरकर दूसरे समयमें देव हो जाता है, उस उपशान्त मोही जीवके एक प्रकृतिक बन्ध स्थान का जघन्यकाल एक समय प्राप्त होता है । तथा एक कोटि. वर्षकी आयुवाला जो मनुष्य सात माह गर्भ में नन्तर जन्म लेकर आठ वर्ष प्रमाण कालके सयमको प्राप्त करके एक अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर क्षीणमोह हो जाता है, उसके एक प्रकृतिक वन्धस्थानका उत्कृष्ट काल आठ वर्ष सात मास और अन्तर्मुहूर्त कम एक पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण प्राप्त होता है । : I रहकर और तद्व्यतीत होने पर - * + Bitc=
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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