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________________ गुणस्थानो में नामकर्मके सवेधभग । २९१ इनके संवेधका विचार करते हैं - २८ प्रकृतियोका बन्ध करनेवालेके उदयस्थान दोनो होते हैं किन्तु सत्तास्थान एक प्रकृतिक ही होता है । २६ प्रकृतियोका बन्ध करनेवालेके उदयस्थान दोनो होते हैं किन्तु सत्तास्थान एक ८६ प्रकृतिक ही होता है । ३० प्रकृतियोका बन्ध करनेवालेके भी उदयस्थान दोनो होते हैं किन्तु सत्तास्थान दोनों के एक ६२ प्रकृतिक हो होता है । तथा ३ / प्रकृतियों का बन्ध करने वालेके उदयस्थान दोनो होते हैं किन्तु सत्तास्थान एक ९३ प्रकृतिक ही होता है । यहा तीर्थकर या आहारक द्विक इनमे से जिसके जिसकी सत्ता होती है वह नियमसे उसका बन्ध करता है इसलिये एक एक बन्धस्थानमें एक एक सत्तास्थान कहा है | यहाँ कुल सत्तास्थान ८ होते हैं । इस प्रकार अप्रमत्तसयत के बन्ध, उदय और सत्तास्थानोंके संवेधका विचार किया । अप्रमत्तसयतके बन्ध, उदय और सत्तास्थानांके सवेधका ज्ञापक कोष्टक [ ४४ ] बन्धास्थान | २८ २६ ३० ३१ भग १ १ ? उदयस्थान २६ ३० २६ ३० २९ ३० २९ ३० -) भग ६४५ R ६४५ १ १४६ २ १४६ सत्तास्थान जा τ द ६२ ६२ ६३ ૩
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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