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________________ गुणस्थानों में नामकर्मके बन्धादि स्थान २६३ विशेषार्थ - इन दो गाथाओं में किस गुणस्थान में नामकर्मके कितने बन्ध, उदय और सत्त्वस्थान होते हैं यह बतलाया है । अब आगे विस्तारसे उन्हींका विचार करते हैं - मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें २३,३५ २६, २८, २९ और ३० ये छह बन्धस्थान होते है | इनमेसे २३ प्रकृतिक बन्धस्थान अपर्याप्त एकेन्द्रिय के योग्य प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले जीवके होता है। इसके वादर और सूक्ष्म तथा प्रत्येक और साधारण के विकल्पसे चार भन होते हैं । २५ प्रकृतिक वन्धस्थान पर्याप्त एकेन्द्रिय तथा अपर्याप्त दोइन्द्रिय तीनइन्द्रिय, चारइन्द्रिय, तिर्यंच पचेन्द्रिय और मनुष्यगतिके योग्य प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले जीवोके होता है । सो इनमेसे पर्याप्तक एकेन्द्रियके योग्य बन्ध होते समय २० भंग होते हैं और शेपकी अपेक्षा एक एक भग होता है । इस प्रकार २५ प्रकृतिक वन्धस्थानके कुल २५ भंग हुए । २६ प्रकृतिक बन्धस्थान पर्याप्त एकेन्द्रियके योग्य बन्ध करनेवाले जीवके होता है । इसके १६ भंग होते हैं । २८ प्रकृतिक वन्धस्थान देवगति या नरकगतिके योग्य प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाले जीवके होता है । सो देवगतिके योग्य २८ प्रकृतियोंका बन्ध होते समय भंग होते हैं और नरकगति के योग्य प्रकृतियो का बन्ध होते समय १ भग होता है । इस प्रकार २८ प्रकृतिक वन्धस्थानके कुल नौ भंग होते हैं । २६ प्रकृतिक बन्धस्थान पर्याप्त दोइन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, तिर्यच पचेन्द्रिय और मनुष्यगतिके योग्य प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले जीवोंके होता है। सो पर्याप्त disन्द्रिय, तीनइन्द्रिय और चार इन्द्रियके योग्य २६ प्रकृतियोंका बन्ध होते समय प्रत्येकको अपेक्षा आठ, आठ भंग होते हैं । तिर्यचपंचेन्द्रियके योग्य २९ प्रकृतियोका बन्ध होते समय ४६०८ भंग होने हैं। तथा मनुष्यगतिके योग्य २९ प्रकृतियोंका बन्ध
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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