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________________ उपयोगोंमे भंगविचार हुए । तथा इन सवका जोड़ ३१६ हुआ । इनमें से प्रत्येक चौवीसी में २४, २४ भग होते हैं अत इन्हें २४ से गुणित कर देने ७५८४ होते हैं । तथा दो प्रकृतिक उदयस्थानमें १२ भंग और एक प्रकृतिक उदयम्थानमें ५भग होते हैं जिनका कुल जोड़ १७ हुआ । सो इन्हें वहाँ सम्भव उपयोगोंकी संख्या से गुणित करदेने पर ११९ होते है। अब इन्हें पूर्व राशिमें मिला देने पर कुल भग ७७८३ होते हैं । कहा भी है 'उदयाणुवओगेसु सयसयरिसया तिउत्तरा होति ।' अर्थात्-'मोहनीय के उदयस्थान विकल्पोंको वहा सम्भव, उपयोगोंसे गुणित करने पर उनका कुल प्रमाण ७७०३ होता है।' विन्तु एक मत यह भी पाया जाता है कि सम्यग्मिथ्याष्टि गुणस्थान में अवधिदर्शनके साथ छह उपयोग होते हैं, अत इस मतके स्वीकार करने पर इस गुणस्थानमे ६६ भग बढ़ जाते हैं जिससे कुल भंगोकी संख्या ७७६६ प्राप्त होती है। इस प्रकार ये उपयोग गुणित उदयस्थान भग जानना चाहिये। (१) पञ्च० सप्त० गा० ११८ । (0) गोम्मटसार कर्मकाण्डमें योगों की अपेक्षा उदयस्थान १२६१३ और पदवृन्द ८८६४५ वतलाये हैं। तथा उपयोगों की अपेक्षा उदयस्थान ७७६ और पदवृन्द ५१०८३ बतलाये हैं।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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