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________________ योगोंमे भगविचार ર૪૭ योगोकी अपेक्षा १२ से ३२ को गुणित करके २४ से गुणित करे और वैक्रियमिश्र की अपेक्षा ३२ को १६ से गुणित करे । इस प्रकार गुणनक्रियाके करने पर सास्वादनमे कुल पदवृन्द ६७२८ प्राप्त होते हैं। मिश्रमे ३० योग औरउ दय पद ३२ हैं। किन्तु यहाँ सव योगोमे सब उदयपद और उनके कुल भग सम्भव हैं अत' यहाँ १० से ३२ को गुणित करके २४से गुणित करने पर ७६८० पदवृद प्राप्त होते है। अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानमे योग १३ और उदयपद ६० है। सो यहाँ १० योगोमे तो सब उदयपट और उनके कुल भग सम्भव हैं अत १० से ६० को गुणित करके २४ से गुणित कर देने पर १० योगो सबंधी कुल भग १४४०० प्राप्त होते हैं। किन्तु वैनियमिश्र काययोग और कार्मणकाययोगमें स्त्रीवेदका उदय नहीं होता अत' यहाँ स्त्रीवेदसंवधी भंग नहीं प्राप्त होते, इसलिए यहाँ २ को ६० से गुणित करके १६ से गुणित करने पर उक्त दो दो योगों संबंधी कुल भंग १९२० प्राप्त होते हैं। तथा औदारिकमिश्रकाययोगमें बीवेट और नपुंसक्वेदका उदय नहीं होनेसे दो योगी संबंधी भाग नहीं प्राप्त होते, इसलिये यहाँ ६० से ८ को गुणित करने पर औदारिकमिश्र काययोगकी अपेक्षा ४८० ६ भग प्राप्त होते हैं। इस प्रकार चौथे गुणस्थानोमे १३ योग संबंधी कुल पदवृन्द १४४००+ १९२०+ ४८०%१६८०० होते हैं । देशविरत गुणस्थानमे योग ११ और पद ५२ है । किन्तु यहाँ सब योगों मे सव उदयपद और उनके भंग सम्भव हैं अत यहाँ ११ से ५२ को गुणित करके २४ से गुणित करने पर कुल भग १३७२८ होते
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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