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________________ गुणस्थानोमें भङ्गविचार . २३३ उदय कहीं प्राप्त नहीं होता अतः ३ प्रकृतिक उदयस्थान नहीं वत्तलाया और इसलिए मोहनीयके कुल उदयस्थान ६ वतलाये हैं। ४४ नम्बरकी गाथामें 'विरए खओवसमिए' पद आया है, जिसका अर्थ 'क्षायोपशमिक विरत होता है। सो इससे यहाँ प्रमत्तसयत और अप्रमत्तसयत लेना चाहिये, क्यो कि क्षायोपशमिक विरत यह सज्ञा इन दो गुणस्थानवाले जीवोकी ही है । इसके आगे जीवको या तो उपशामक सज्ञा हो जाती है याक्षपक । जो उपशमक श्रेणि पर चढता है वह उपशमक और जो क्षपक श्रेणिपर चढ़ता है वह क्षपक कहलाता है। इनमें से किस गुणस्थानमें रितनी प्रकृतियोके कितने उदयस्थान होते है इसका स्पष्ट निर्देश गाथामें किया ही है। हम भी इन उदयस्थानों की सामान्य विवेचना करते समय उनका विशेप खुलासा कर आये हैं इसलिये यहाँ इस विपय मे अधिक न लिखकर केवल गाथाश्रो के अर्थका स्पष्टीकरणमात्र किये देते है-मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमे ७, ८, ९, और १० प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं। यहा इनके भगोकी ८ चौबीसी प्राप्त होती हैं। सास्वादन और मिन में ७, ८, और प्रकृतिक तीन तीन उदयस्थान होते है । यहाँ इनके भगोंकी क्रमसे ४ और ४ चौवीसी प्राप्त होती हैं। अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानमे ६, ७, ८ और ६ प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं। यहाँ इनके भगोकी ८ चौवीसी प्राप्त होती हैं। देशविरत गुणस्थानमे ५, ६, ७ और. ८ प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं। यहां इनके भंगोकी ८ चौबीसी प्राप्त होती हैं। प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमे ४,
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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