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________________ गुणस्थानोमे भंगविचार २१९ १२-गुणस्थानों में संवेध भंग अव गुणस्थानाको अपेक्षा ज्ञानावरणादि आठ कर्मोके स्वामी का कथन करते हैं नाणंतराय तिविहमवि दससु दो हॉति दोसु ठाणेसुं। अर्थ-प्रारम्भके दस गुणस्थानोंमे नानावरण और अन्तराय कर्म वन्ध, उदय और सत्त्वकी अपेक्षा तीन प्रकारका है। तथा उपशान्तमोह और क्षीणमोह इन दो गुणस्थानोमे उदय और मत्त्वकी अपेक्षा दो प्रकारका है। विशेषार्थ-अभी तक नौदह जीवस्थानोमें पाठ कर्मों के बन्ध, उदय और सत्त्वस्थान तथा उनके भंगोका कथन किया । अव गुणस्थानीमें उनका कथन करते हैं-ऐसा नियम है कि ज्ञानावरणकी पाचौ प्रकृतियोंकी और अन्तरायको पांची प्रकृतियोकी वन्धव्युन्छित्ति दसवें गुणस्थानके अन्तमे तथा उदय और सत्वव्युच्छित्ति वारहवे गुणस्थानके अन्तमें होती है, अत. सिद्ध हुआ कि मिथ्यारष्टि से लेकर सूक्ष्मसम्परायतक दस गुणस्थानोमें ज्ञानावरण और अन्तराय कर्मके पाच प्रकृतिक बन्ध, पाच प्रकृतिक उदय और पांच प्रकृतिक सत्त्व ये तीनो प्राप्त होते हैं। तथा उपशान्तमोह और क्षीणमोह इन दो गुणस्थानोमें पांच प्रकृतिक उदय और पाच प्रकृतिक सत्व ये दो ही प्राप्त होते हैं। तथा इससे यह भी जाना जाता है कि बारहवें गुणस्थानसे आगे तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानमे इन दोनो कौके बन्ध, उदय और सत्त्वका अभाव है। अव गणस्थानोमें दर्शनावरण कर्मके भंग वतलाते हैं
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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