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________________ २०५ जीवसमासोमें भंगविचार और चारइन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके बन्धादि स्थान और उनके भगों का कथन करना चाहिये। __ अव गाथामें की गई सूचना के अनुसार असंज्ञी पर्याप्त जीवस्थानमे वन्धादिस्थान और यथासम्भव उनके भंग बतलाते हैंअसंज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्तक जीव मनुष्यगति और तिर्यंचगतिके योग्य प्रकृतियोका बन्ध तो करते ही हैं किन्तु ये नरकगति और देवतिके योग्य प्रकृतियोका भी बन्ध करते हैं अतः इनके २३, २५, २६, २८, २९ और ३० प्रकृतिक छह बन्धस्थान और तदनुसार १३९२६ भंग होते है । तथा उदयस्थानो की अपेक्षा विचार करनेपर यहाँ २१, २६,२८,२९, ३० और ३१ प्रकृतिक छह उदयस्थान होते है। इनमेंसे २१ प्रकृतिक उदयस्थानमें यहॉ तैजस, कार्मण, अगुः रुलघु स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ,वर्णादिचार, निर्माण,तियंचगति, तिर्यचगत्यानुपूर्वी, पचेन्द्रिय जाति, स, बादर, पर्याप्तक, सुभग और दुर्भगमेंसे कोई एक, आदेय और अनादेयमेसे कोई एक तथा यश कीर्ति और अयशः कीर्ति से कोई एक इन २१ प्रकृतियोंका उदय होता है। यह उदयस्थान अपान्तरालगतिमे ही प्राप्त होता है। तथा इसमें सुभगादि तीन युगलोमेंसे प्रत्येक प्रकृतिके विकल्पसे ८ भंग प्राप्त होते हैं । तदनन्तर जब वह जीव शरीरको ग्रहण कर लेता है तब इसके औदारिक शरीर, औदारिक आगोपाग, छह सस्थानोमेंसे कोई एक सस्थान, छह सहननोमेंसे कोई एक संहनन, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियोका उदय और होने लगता है। किन्तु यहाँ आनुपूर्वीका उदय नहीं होता, अत. उक्त २१ प्रकृतियोमें उक्त छह प्रकृतियोंके मिलाने पर और तिर्यंचगत्यानुपूर्वीके निकाल लेने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ छह संस्थान और छह संहननोंकी अपेक्षाभंगोके विकल्प और बढ़ गये हैं, अत' पूर्वोक्त ८ भंगोंको दो बार. छहसे गुणित
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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