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________________ सप्ततिकाप्रकरण ३-अन्य सप्ततिकाएँ पचसंग्रहकी सप्ततिका-प्रस्तुत म्प्ततिकाके सिवा एक मततिका प्राचार्य चन्द्रपि महत्तर कृत पंचतग्रह में प्रधित है। पचसंग्रह एक लग्रह प्रन्ध है। यह पाँच प्रकरणों में विभक्त है। इसके अन्तिम प्रकरणका नाम सप्ततिका है। __एक तो पचसग्रहके मततिकाझी अधिक्तर मूल गाथाएँ प्रस्तुत सप्ततिकामे मिलती-जुलती हैं, दूसरे पंचसग्रह की रचना प्रस्तुत स्ततिकाके बहुत काल बाद हुई है और तीसरे इसका नाम मप्ततिका होते हुए भी इसमें १५६ गाधाएँ हैं इससे ज्ञात होता है कि पचसप्रहकी सप्ततिकाका अाधार प्रकृत म्प्सतिका ही रहा है। दिगम्बर परम्परामें प्रचलित सप्ततिका-एक अन्य सप्ततिका दिगम्वर परम्परामें प्रचलित है। यद्यपि अवतक इसको स्वतन्त्र प्रति देखने में नहीं पाई है तथापि प्राकृत पसंग्रहमें उसके अंगरूपसे यह पाई जाती है। प्राकृत पचेमनट एक सग्रह अन्य है। इसमें जीवसमास, प्रकृतिसमुत्कीर्तन, वधाव्यसत्त्वदुक्त पद, शतक और सप्ततिका इन पांच प्रन्योंका संग्रह किया गया है। इनमेंसे सन्तके दो प्रकरणों पर भाप्य भी है। आचार्य श्रमितिगतिका पंसग्रह इसीके आधारसे लिखा गया है। (१) पंचसंग्रहकी एक प्रति हमें हमारे मित्र पं० हीरालालजी शास्त्रीने भेजी थी जिसके आधारसे यह परिचय लिखा गया है। पडितजीके इस कार्यके लिये हम उनका सम्पादकीय कन्यमें प्रामार मानना भूल गये हैं, इसलिये यहाँ उनका विशेष रूपसे स्मरण कर लेना हम अपना कर्तव्य समझते हैं। शतक और सप्ततिकाकी चूर्णि भी उन्हीसे प्राप्त हुई थीं। उनका प्रस्तावनामें बड़ा उपयोग हुआ है।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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