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________________ १७२ सप्ततिकाप्रकरण एकेन्द्रियोंके, देव और नारकियोके तथा वैक्रियशरीरको करनेवाले मिथ्यावष्टि नियंच और मनुष्योके होता है। २८ और २९ प्रकृतियोंका उदय विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्योके तथा वैक्रियशरीर को करनेवाले तिथंच और मनुष्योके तथा देव और नारकियोंके होता. है। ३० प्रकृतियोंका उदय विकलेन्द्रिय, नियंच पंचेन्द्रिय और मनुष्योंके तथा उद्योतका वेदन करनेवाले देवोके होता है। तथा ३२ प्रकृतियोंका उदय उद्योतका वेदन करनेवाले पर्याप्त विकलेन्द्रिय और तिचंच पचेन्द्रियोके होता है। तथा देवगतिके योग्य २९ प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले अविरतसम्यग्दृष्टि मनुष्योके २१, २६, २८, २९ और ३० ये पाच उदयस्थान होते हैं। आहारक संयत और वैक्रियसंयतोंके २५, २७, २८, २९ और ३० ये पांच उदयन्धान होते हैं। वैक्रियशरीरको करने वाले असंयत और संयतासयत मनुष्योंके ३० के विना ४ उदयस्थान होते हैं। मनुष्योंमे सयतोंको छोड़कर यदि अन्य मनुष्य वैक्रियशरीरको करते हैं तो । उनके उद्योतका उदय नही होता, अन यहा ३० प्रकृतिक उदयस्थान का निषेध किया है। इस प्रकार २९ प्रकृतिक बन्धस्थानमे कितने उज्यस्थान होते हैं इसका विचार किया। ____ अब सत्त्वस्थानीका विचार करते हैं-२९ प्रकृतिक वन्धस्थान मे ९३, ९२.८९, ८८, ८६, ८० और ७८ चे सात सत्त्वस्थान होते हैं। यदि विकलेन्द्रिय और तिचंच पंचेन्द्रियके योग्य २९ प्रकृतियो का वध करनेवाले पर्याप्तक और अपर्याप्तक एकेन्द्रिय विक्लेद्रिय और तियंच पचन्द्रिय जीवोंके २१ प्रकृतियोका उदय होता है तो वहाँ ९२, ८८, ८६, ८० और ७८ चे पाच सत्वस्थान होते हैं। इसी प्रकार २४, २५ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानोमें उक्त पाच सत्त्वस्थान जानना चाहिये । तथा २७, २८, २९, ३० और ३१ इन उदयस्थानॉमें ७८ प्रकृतिक सच्चस्थानको -छोड़कर शेप चार
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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