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________________ २५८ 'सप्ततिकाप्रकरण तथा २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक उदयस्थानोंमें ७८ प्रकतिक सत्त्वस्थान को छोड़कर नियमसे शेप चार सत्त्वस्थान होते हैं। क्योकि २८, २९ और ३० प्रकृतियो का उदय पर्याप्त विकलेन्द्रिय, ' तिर्यंच पचेन्द्रिय और मनुष्योके होता है और ३१ प्रकृतियो का, उदय पर्याप्त विकलेन्द्रिय और पचेन्द्रिय तिर्यंचोके होता है परन्तु इन जीवोके मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीकी सत्ता नियमसे पाई जाती है। अतः उपर्युक्त उदयस्थानोमें ७८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नहीं होता यह सिद्ध हुआ। इस प्रकार २३ प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले जीवोके यथायोग्य नौ ही उदयस्थानोकी अपेक्षा चालीस सत्वस्थान होते है। । २५ और २६ प्रकृतियोका वन्ध करनेवाले जीवोके भी उदयस्थान और सत्त्वस्थान इसी प्रकार जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेपता है कि पर्याप्त एकेन्द्रियके योग्य २५ और २६ प्रकृतियों का बन्ध करनेवाले देवोके २१, २५, २७, २८, २९ और ३० इन छह उदयस्थानोमे ९२ और ८८ ये दो सत्तास्थान ही प्राप्त होते है। अपर्याप्त निकलेन्द्रिय, तिथंच पचेन्द्रिय और मनुष्योके योग्य २५ प्रकृतियोका वन्ध देव नहीं करते, क्योकि उक्त अपर्याप्त जीवोंमें देव उत्पन्न नहीं होते। अत सामान्यसे २५ और २६इनमेंसे प्रत्येक वन्धस्थानमे नौ उदयस्थानोकी अपेक्षा ४० सत्त्वस्थान होते हैं। . २८ प्रकृतिक बन्धस्थानमें २१, २५, २६, २७, २८, २९, ३० और ३१ ये आठ उदयस्थान होते है। २८ प्रकृतिक वन्धस्थानके दो भेद हैं, एक देवगतिप्रायोग्य और दूसरा नरकगतिप्रायोग्य । इनमेंसे देवगतिके योग्य २८ प्रकृतियोका बन्ध होते समय नाना जीचोकी अपेक्षा उपर्युक्त आठों ही उदयस्थान होते हैं और नरकगतिके योग्य प्रकृतियोका वन्ध होते समय ३० और ३१ प्रकृतिक दो ही उदयस्थान होते हैं। इनमेंसे देवगतिके योग्य २८ प्रकृतियो
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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