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________________ प्रस्तावना | १७ उपयोग किया गया है। जैसा कि पहले वतला भाये है। इसमें ८९ गाथाओं पर टीका लिखी गई है । ७२ गाथाएँ वे ही हैं जिन पर मलयगिरि आचार्यने टीका लिखी है । १० अन्तर्भाव्य गाथाएँ हैं और सात अन्य गाथाएँ हैं । ये सात गाथाएँ हम पहले ग्रन्थकर्ताका निर्णय करते समय उद्धृत कर आये हैं । यद्यपि प्रत्यके बाहरकी प्रकरणोपयोगी गाथाओं की टीका करनेकी परिपाटी पुरानी है । धवला आदि टीकाओं में ऐसी कई उपयोगी गाथाओंकी टीका दी गई है । पर वहाँ प्रकरण या अन्य प्रकारसे इसका ज्ञान करा दिया जाता है कि यह मूल गाया नहीं है । किन्तु इम चूर्णिमें ऐसा समझनेका कोई आधार नहीं है । चूर्णिकार मूल गाथाका व्याख्यान करते समय गाथाके प्रारम्भका कुछ अश प्रदुष्टत करते हैं। यथा I Satra च पण नवंस० ति गाहा । मलयगिरि आचार्यने जिन गाथाओं को मूलका नहीं माना है उनकी टीका करते समय भी चूर्णिकारने उसी पद्धतिका अनुसरण किया है 1 यथा सतह नव० गाहा । सत्तावीमं सुहुमे० गाहा | अणियट्टिवायरे थीण० गाहा । एत्तो हणड़० गाहा । इत्यादि । इससे यह निर्णय करनेमें वही कठिनाई हो जाती है कि सप्ततिकाकी मूल गाथाएँ कौन कौन हैं। मालूम होता है कि 'गाहग्गा सयरीए' यह गाथा इसी कारण रची गई है। इसमें सप्ततिकाका इतिहास सन्निहित है । वर्तमान में आचार्य मलयगिरिकी टीका ही ऐसी है जिससे सप्ततिकाकी गाथाओंका परिमाण निश्चित करने में सहायता मिलती है । इसीसे हमने गाथा संख्याका निर्णय करते समय आचार्य मलयगिरि की टीका का प्रमुखता से ध्यान रखा है । वृत्ति - सप्ततिका के ऊपर एक वृत्ति श्राचार्य मलयगिरिने भी लिखी है। वैदिक परम्परामें टीकाकारोंमें जो स्थान वाचस्पतिमिश्रका है। जैन ख
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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