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________________ नामकर्मके उदयस्थान किन्हीं आचार्योंका मत है कि सुभगके साथ आदेयका और दुर्भगके साथ अनादेयका ही उदय होता है, अतः इस मतके अनुसार पर्याप्तक नाम कर्मके उदयमे इन दोनो युगलोको यश कीति और अयश कीर्ति इन दो प्रकृतियोसे गुणित कर देने पर चार भग हुए और अपर्याप्तका एक इस प्रकार २१ प्रकृतिक उदयस्थानमें कुल पाच भग होते हैं। इसी प्रकार मतान्तरसे आगेके उदरस्थानो मे भी भगोकी विपमता समझ लेना चाहिये। तदनम्तर आढारिक शरीर, औदारिक अगोपाग, छह सस्थानोमेमे कोई एक सस्थान, छह सहननोमेंसे कोई एक सहनन, उपघात और प्रस्येक इन छह प्रकृतियोके मिला देने पर और तिर्यंचगत्यानुपूर्वीके निकाल लेने पर शरीरस्थ नियंच पचेन्द्रियके २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसके भग २८९ होते हैं, क्योकि पर्याप्तकके छह सस्थान,छह संहनन और सुभग आदि तीन युगलोकी सख्याके परस्पर गुणित करने पर ६x६x२x२x२२८८ भग प्राप्त होते है। तथा अपर्याप्तकके हुण्डसस्थान, सेवातसहनन, दुर्भग. अनादेय और अयश कीर्तिका ही उदय होता है, अत. एक यह भग हुआ । इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थानके कुल २८९ भग प्राप्त हो जाते है। शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके इस छब्बीस प्रकृतिक उदयरथानमे पराघात और प्रशस्त और अप्रशस्त विहायोगतिमेसे कोई एक इस प्रकार इन दो प्रकृतियोंके मिलाने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसक्ने भग ५७६ होते हैं, क्योकि पर्याप्तकके जो २८८ भग वतला आये हैं उन्हें विहायोगतिद्विकसे गुणित करने पर ५७६ प्राप्त होते हैं। तदनन्तर प्राणापान पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवकी अपेक्षा इस २८ प्रकृतिक उदयस्थानमें उच्चासके मिला देने पर २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसके भी .पहलेके समान ५७६। भग होते हैं।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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