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________________ १४२ सप्ततिकाप्रकरण २६ प्रकृतियोंमे आतप और उद्योतमेंसे किसी एक प्रकृतिके मिला देनेपर २७ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहां छह भंग होते हैं। इनका खुलामा आतप और उद्योतमेसे किसी एक प्रकृतिके साथ छवीस प्रकृतिक उदयस्थानके समय कर आये हैं। इस प्रकार एकेन्द्रियके पॉचो उदयस्थानोके कुल भंग ५+ ११+७+१३+६ =४२ होते हैं। कहा भी है 'एगिदियउदएसुं पंच य एकार सत्त तेरस या। छक कमसो भगा बायाला हुति सव्वे वि।।' अर्थात् 'एकेन्द्रियोंके २१, २४, २५, २६ और २७ इन पाँच उदयस्थानोमें क्रमसे ५, ११, ७, १३ और ६ भंग होते हैं। जिनका कुल योग ४२ होता है।' - दोइन्द्रिय जीवोके २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ ये छह उदयस्थान होते है। पहले जो चारह ध्रुवोदय प्रकृतियाँ बतला आये हैं उनमे तिर्यंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, दोइन्द्रियजाति, बम, वादर, पर्याप्त और अपर्याप्तमेसे कोई एक, दुर्भग, अनादेय तथा यश.कीर्ति और अयश कीर्तिमेंसे कोई एक इन नौ प्रकृतियोके मिलाने पर इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह उदयस्थान भवक अपान्तरालमें विद्यमान जीवके प्राप्त होता है। यहाँ भंग तीन होते है, क्योकि अपर्याप्तके एक अयश.कीर्तिका ही उदय होता है, अत' एक भग यह हुआ और पर्याप्तकके यशःकीर्ति और अयश कीर्तिके विकल्पसे इन दोनोका उदय होता है, अत. दो भंग ये हुए। इस प्रकार इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थानमे कुल तीन भंग हुए । इन इक्कीस प्रकृतियोमे औदारिक शरीर, औदारिक आगोपांग, हुएडसंस्थान, सेवार्तसंहनन, उपधान और प्रत्येक इन छह प्रकृतियोंको मिलाकर तियेच गत्यानुपूर्वीके निकाल लेनेपर शरीरस्थ दोइन्द्रिय जीवके २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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