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________________ १०२ सप्ततिकाप्रकरण अब इन बारह भंगोको छोड़कर उदयस्थानोकी संख्या और पदसंख्या बतलाते हैं - नवतेसीयसंहिं उदयविगप्पेहिं मोहिया जीवा । उत्तरिसीयाला पयविंदसएहिं विनेया ॥२०॥ अर्थ – संसारी जीव नौसौ तिरासी उदयविकल्पोसे और उनहत्तर सौ सैंतालीस अर्थात् छह हजार नौसौ सैंतालीस पदसमुदायोसे मोहित हो रहे हैं ऐसा समझना चाहिये । विशेषार्थ -- पिछली गाथामे नौसौ पंचानवे उदय विकल्प बतलाये है उनमें से बारह विकल्पोके घटा देने पर कुल नौसौ तिरासी उदयविकल्प प्राप्त होते है । तथा पिछली गाथामे जो छह हजार नौ सौ इकहत्तर पदवृन्द वतलाये है उनसे २x१२ = २४ पदवृन्दोंके घटा देनेपर कुल छह हजार नौसौ सैंतालीस पदवृन्द प्राप्त होते हैं। यदि यहाँ जिनके मतसे चार प्रकृतिक बन्धके संक्रमके समय दो प्रकृतिक उदयस्थान होता है उनके मतको प्रधानता न दी जाय और उनके मतसे दो प्रकृतिक उदयस्थानके उदयविकल्प और पदवृन्दोको छोड़कर ही सव उदयविकल्पो की और पदवृन्दोकी गणना की जाय तो क्रमश उनकी संख्या ९८३ और ६९४७ होती है । जिनसे दसवे गुणस्थानतकके सव संसारी जीव मोहित हो रहे हैं। ( १ ) तेसीया नवसया एव । पञ्चसं० सप्तति० गा० २८ । ( २ ) इस सप्ततिकाप्रकरण में मोहनीयके नदयविकल्प दो प्रकारसे बतलाये हैं, एक ६६५ और दूसरे ६८३ । इनमें से ६६५ उदय विकल्पोंमें दो प्रकृतिक उदयस्थानके २४ भग और ६८३ उदयविकल्पों में दो प्रकृतिक उदयस्थान के १२ भग लिये हैं । पचसग्रह सप्ततिकामें भी ये उदयविकल्प बतलाये हैं । किन्तु वहाँ वे तीन प्रकारसे बतलाये हैं। पहला तो वही है ,
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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