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________________ १२ सप्ततिकाप्रकरण इसका आशय है कि चन्द्रर्षि महत्तरके मतका अनुसरण करने वाली टीका आधारसे सहतिकाकी गाथाएँ ८९ हैं । किन्तु टवेकारने इसका अर्थ करते समय सप्ततिका के कर्ताको ही चन्द्र महत्तर बतलाया है। मालूम पडता है कि इसी भ्रमपूर्ण अर्थके कारण सप्ततिकाके कर्ता चन्द्रमिहत्तर हैं हम भ्रान्तिको जन्म मिला है 1 प्रस्तुत सप्ततिकाके ऊपर जिस चूर्णिका उल्लेख हम अनेक बार कर आये हैं उसमें १० अन्तर्भाव्य गाथाओंको व ७ अन्य गाथाओंको मूल गाथाओं में मिलाकर कुल ८६ गाथाओं पर टीका लिखी गई है । इनमें से १० अन्तर्भाय गाथाएँ हमने परिशिष्ट में दे दी हैं । ७ अन्य गाथाएँ यहाँ दी जाती हैं बायरे जाण ॥ २ ॥ ईगि विगल सगलपचसिगा उ चत्तारिभाइभ उदया । उगुचीसsद्वारस त्रिसय अनउई य न य सेसा ॥ १ ॥ संत नव य पनरस सोलल अट्टारसेव वगुवीसा | एगाहि दु चवीसा पणुवीसा सत्तावीस सुहुमे अट्ठावीस पि मोहपयढीओ । उयसतचीयरागे उवसता होत नायन्वा ॥ ३ ॥ भैणियट्टिबारे थोणगिद्वितिग णिरयतिरियणामाठ | सखेज्जइमे सेसे तप्पाभोग्गाओ खीयंति ॥ ४ ॥ ऐत्तो हणइ कसायट्ठगं पि पच्छा णपुंसंग इत्थिं । तो णोकसायछक्कं छुम्भइ सजलणकोहम्मि ॥ ५ ॥ (१) देखो प्रकरण रत्नाकर ४ था भाग पृ० ८६६ । (२) देखो चूर्णि प० २६ । (३) देखो चूर्णि० प० ६२ । ( ४ ) देखो चूर्णि प० ६३ । (1) देखो चूर्णि प० ६४ ।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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