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________________ ९४ सप्ततिकाप्रकरण यद्यपि यहाँ वन्धस्थान और उदयस्थानोंके परस्पर संवेधका विचार किया जा रहा है अतः गाथामे सत्त्वस्थानके उल्लेखकी आवश्यकता नहीं थी फिर भी प्रसंगवश यहाँ इसका संकेतमात्र किया है। अब दससे लेकर एक पर्यन्त उदयस्थानोमें जितने भंग सम्भव है उनके दिखलानेके लिये आगेकी गाथा कहते हैं एक्कंगछक्केक्कारस दस सत्त चउक्क एक्कगा चेव । एए चउवीसगया चउंचीस दुगेक्कमिक्कारा ॥१८॥ अर्थ-इस प्रकृतिक आदि उदयस्थानोमें क्रमसे एक, छह, ग्यारह, दस, सात, चार और एक इतने चौबीस विकल्परूप भग होते हैं। तथा दो प्रकृतिक उदयस्थानमे चौबीस और एक प्रकृतिक उदयस्थानमें ग्यारह भग होते हैं ।। विशेपार्थ-पहले दस प्रकृतिक आदि उदयस्थानामें कहाँ कितनी भगोकी चौवीसी होती हैं यह पृथक् पृथक् वतला आये है (१) 'एक्कगछक्ककारस दस सत्त चक्क एक्कग चेव । दोसु च वारस भगा एकम्हि य हॉति चत्तारि ॥' कसाय. (वेदकाधिकार)। "चवीसा । एकगच्छक्ककारस दस सत्त चउक एकात्रो ॥'-कर्म प्र० उदी० गा० २४ । घव० उदी०, श्रा०प० १०२२ । 'दसगाइसुचठवीसा एकाधिकारदपसगचउक्क । एका य ।' -पञ्चत. सप्तति० गा० ०७। 'एक यवकेयार दससगचदुरेकर्य अवुणरुत्ता। एदे चदुवीगदा वार दुगे पत्र एक्कम्मि ॥'-गो. कर्म० गा० ४८८। (२) सप्ततिका नामक षष्ठ कर्मप्रत्यके टवेमें इस गाथाका चौथा चरण दो प्रकारसे निर्दिष्ट किया है। स्त्रमतरूपसे 'यार दुगिकम्मि इक्कारा' इस प्रकार और मतान्तररूपसे 'चवीस दुगिकमिकारा' इस प्रकार निर्दिष्ट किया है। प्रथम पाठके अनुसार स्त्रमतसे दो प्रकृतिक उदयस्थानमें १२ भग
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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