SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिकाप्रकरण विच्छेद हो जाने पर चार प्रकृतियोका बन्ध होता है। साथ ही यह नियम है कि पुरुषवेदकी वन्धव्युच्छित्ति और उदयव्युच्छित्ति एक साथ होती है, अत चार प्रकृतिक बन्धके समय चार सज्वलनोमें से किसी एक प्रकृतिका ही उदय होता है। इस प्रकार यहाँ चार भंग प्राप्त होते हैं, क्योकि कोई जीव संज्वलन क्रोधके उदयसे, कोई जीव संज्वलन मानके उदयसे, कोई जीव संज्वलन मायाके उदयसे और कोई जीव संज्वलन लोभके उदयसे श्रेणि पर चढ़ते है, इसलिये चार भगोके प्राप्त होनेमें कोई आपत्ति नहीं है। यहाँ पर कितने ही प्राचार्य चार प्रकृतिक बन्धके संक्रमके समय तीनों वेदोंमेसे किसी एक वेदका उदय होता है ऐसा स्वीकार करते हैं, अत. उनके मतसे चार प्रकृतिक वन्धके प्रथम कालमें दो प्रकृतियो का उदय होता है और इस प्रकार चार कषायोको तीन वेदोसे गुणित करने पर बारह भग प्राप्त होते हैं। पञ्चसंग्रहकी मूल टीकामे भी कहा है-- ____ 'चतुर्विधवन्धकस्याद्यविभागे त्रयाणां वेदानामन्यतमस्य वेदस्योदय कचिदिच्छन्ति, अतश्चतुर्विधवन्धकस्यापि द्वादश द्विकोदयान् जानीहि ।' अर्थात् -'कितने ही आचार्य चार प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले जीवके पहले भागमे तीन वेदोमेसे किसी एक वेदका उदय मानते हैं, अत चार प्रकृतियोका वन्ध करनेवाले जीवके भी दो प्रकृतियोके उदयसे बारह भंग जानना चाहिये। __इस प्रकार उन श्राचार्योंके मतसे दो प्रकृतियोके उदयमे चौबीस भंग हुए। वारह भंग तो पॉच प्रकृतिक बम्धस्थानके समयके हुए और वारह भंग चार प्रकृतिक वन्धस्थानके समयके, इस प्रकार चौवीस हुए। संज्वलन क्रोधके बन्धविच्छेद हो जाने पर वन्ध तीन प्रकृतिक
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy