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________________ ५६ सप्ततिकाप्रकरण सकलित है अतः अयोगिकेवली गुणस्थानके अन्तिम समयमे इसका निषेध किया । तथा सातवां भग अयोगिकेवली गुणस्थान के अन्तिम समयमे होता है, क्योंकि केवल उच्चगोत्रका उदय और उच्चगोत्रका सत्त्व अयोगिकेवली गुणस्थानके अन्तिम समयमें ही पाया जाता है, अन्यत्र नही । इस प्रकार गोत्रकर्मकी अपेक्षा कुल सवेधभग सात होते है। गोत्रकर्मके सवेधभंगो का ज्ञापक कोष्टक [ १४ ] भग। वन्ध उदय । सत्व गुणस्थान १. नी० नी० नो० नी० नी० उ० ३ नी । ____ट. नी० उ० ४ उ. नी. नी. उ० १, २, ३, ४,५ नी००१ से १० तक उ० | नी० १० ११,१२,१३ व १४० स० उ० उ० १४ का अन्तिम समय (१) गोदे सचेव हॉति भंगा हु। मो० कर्म० गा० ६५१ । ।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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