SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रन्थपरिचय सुकृतसंकीर्तन अने कीर्तिकौमुदीनां वर्णनो संवत् १२९० पहेलांनी कोई यात्राना होवा जोईये एम लागे छे. कारण धर्माभ्युदयनो रचनाकाळ संवत १२९० पहेलां आवे छे जेनी पालोचना "रचनाकाळ" ना शिरोलेख नीचे हवे पछी करवामां आवनार छे. ते ज प्रमाणे सुकृतसंकीर्तन पण तेना समकाळमां रचायु होवान ख० चीमनलाल दलाले तेनी प्रस्तावनामां जणाव्यु छे. तदुपरांत, धर्माभ्युदय काव्यना यात्रावर्णनने सुकृतसंकीर्तन तथा कीर्तिकौमुदी केटलेक अंशे अनुसरे छे; ज्यारे वसंतविलासनुं वर्णन तेथी जुर्बु पडे छे. आथी वसंतविलास अने धर्माभ्युदय काव्यनां यात्रावर्णनो जुदी जुदी तीर्थयात्राओनां हशे ए, अनुमान थाय छे. सुकृतसंकीर्तन अने कीर्तिकौमुदीनां यात्रावर्णनो करतां धर्माभ्युदयनुं यात्राविवरण अनेक दृष्टिए उत्कृष्टता जाहेर करे छे तेटलु ज नहि पण बधा यात्रामहोत्सव स्तोत्रोमा उदयप्रभर्नु आ यात्रावर्णन नवीन आदर्श पेदा करे छे. ते जेटलुं रसिक छे तेटलं ज भाववाही छे. नेमा अतिशयोक्तिने बिलकुल अवकाश नथी. तेना शब्दे शब्दमां निसर्गता अने धर्मभावनानो अप्रतिम रस टपकतो जोवामां आवे छे. तेमणे आलेखेल यात्रावर्णन अने तेनी रोचक शैली ग्रन्थकारने एक साचा विवेचक तरीके जहेर करे छे. तेनी ढूंक आलोचना अहीं आपवामां आवे तो अस्थाने नहि गणाय एम मानी तत्संबंधी केटलुक विवरण अने रजु करवा प्रयत्न कयों छे.. वस्तुपालना हृदयमा रहेली धर्मनी उदात्त भावनाना परिणामे पोताना गुरुश्री विजयसेनसूरिना उपदेशामृतथी प्रेरणा मेळवी तेमणे महायात्रानो अद्वितीय प्रसंग धर्मशास्त्रना नियम मुजब योज्यो हतो. शुभ मुहूर्ते आ यात्रानुं संघप्रस्थान शरु थयु. घोळकाथी नीकळी संघ कासहृद (कासींदा) मां पडाव नाख्यो. रस्तामां आवतां दरेक गाम अने शहेरनां देवमंदिरो, तीर्थों अने उपाश्रयोना पूजन, अर्चन तथा जीर्णोद्धार करी संधपति तेमने सत्कारता. ठेर ठेर साधर्मिकवात्सल्यो थता. आ प्रमाणे धर्माचरण करतां तीर्थध्यानमा दत्तचित्त वस्तुपाल संघ साथे शत्रुजय पहोंच्यो. तीर्थयात्रानी प्रेरणा वस्तुपालने गुरुद्वारा थई हती ते हकीकतने प्रामाणिक मानी, दरेक यात्रावर्णन लखनाराये अपनावी छ. उदयप्रभसूरि आ यात्रामा प्रख्यात धर्माचार्यों के वीजा मुख्य मुख्य यात्रिको माटे कई पण निर्देश करता नथी, ज्यारे सुकृतसंकीर्तनकार विजयधर्मसूरि साथे मलधारीगच्छीय नरचंद्रसूरि, वायडगच्छीय जिनदत्तसूरि, संडेरकगच्छना शांतिसूरि अने गल्लक लोकोना वर्धमानसूरि वगेरे प्रख्यात धर्माचार्यो हता एम नोंघे छे.' वसंतविलासवें यात्रावर्णन आथी जुदुं छे. पण तेमां केटलीक हकिकतो विस्तारपूर्वक संग्रहवामां आवी छे. तेणे तो जुदा जुदा शहेरोमांथी ते यात्रामां आवेल संघपतिओनो निर्देश करतां लख्यु छे के चार मंडलाधिपतिओ; लाट, गौड मरु, डाहल, अवंति अने अंग देशना संघपतिओ पोताना संघ सह आ यात्रामां आव्या हता, जेमर्नु १ नागेन्द्रगच्छमुकुटस्य मुनेरनूनमाकर्ण्यकर्ण्यमिति मन्त्रिपतिर्विचारम् । नला खधामनि जगाम जिनेन्द्रयान निर्माणनिर्मलमनोऽतिमनोरथश्रीः ॥ ४४॥ - सुकृत्तसंकीर्तन, सर्ग ४ विशेषमा जुओ-नरनारायणानंद, सर्ग १६, श्लो. ३२-३३. २ अथाचलन् वायटगच्छवत्सलाः कलास्पदं श्रीजिनदत्तसूरयः । निराकृतश्रीषु न येषु मन्मथः चकार केलिं जननीविरोधतः ॥११॥ भवाभिभूतेन मनोभुवा भयादनीक्षितैः क्लुप्तभवामिभृतिभिः । अचालि सण्डेरकगच्छसूरिभिः प्रशान्तसूरैरथ शान्तिसूरिभिः ॥ १२॥ शरीरभासव पराभवं सरः स्मरमनश्यत् किल यस्य दूरतः। सवर्धमानाभिधसूरिशेखरखतोऽचलगलकलोकभास्करः ॥ १३॥ . -सुझततकीर्तन, सर्ग. ५:
SR No.010638
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy