SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 24 . धर्माभ्युदय महाकाव्य ' ... माणेकलाल मुन्शी-जेओ ते वखतनी मुंबईनी काँग्रेस सरकारमा गृहमंत्रीना उच्च स्थानपर अधिष्ठित हता-ना अध्यक्ष पणा नीचे, हेमचन्द्र सारस्वत सत्र' उजवानी पण योजना करवामां आवी. मुंबई, अमदावाद, वडोदरा. भावनगर विगेरे स्थळेथी गुजरातना अनेक विद्वानो, लेखको अने साहित्यिको ते प्रसंगे उपस्थित थया हता. ३ दिवस ए समारंभ उजवायो अने तेमां अनेक विद्वानोनां व्याख्यानो तेम ज निवन्धवाचन विगेरे थयां. प्रायः दरेक सभामा प्रवर्तकजी महाराज तथा श्री चतुरविजयजी महाराज पोताना समग्र शिष्य परिवार साथे उपस्थित रहेता हता. आ पंक्तिओनो लेखक पण ए प्रसंग उपर पूज्यश्रीना खास आमंत्रणथी, उपस्थित थयो हतो अने प्रसंगने अनुरूप विशिष्ट दृष्टिविन्दुथी आलेखेलो राजर्षि कुमारपाळ' ए नामनो एक निबन्ध पण सभा समक्ष म्हें वांच्यो हतो. प्रसंगोचित सभा आगळ एक अन्य संभाषणद्वारा पाटणना जैन भंडारोना उद्धार अने संरक्षण संबन्धे ए बन्ने ज्ञानोपासक गुरु-शिष्योए वर्षों सुधी जे सतत परिश्रम उठाव्यो अने श्रावकोने ए विषयमा जे प्रेरणात्मक उपदेश आप्यो तेनी पण म्हें केटलीक रूपरेखा प्रदर्शित करी जेथी श्रोताओने ते कार्यनी विशिष्ट कल्पना समजाणी अने ए उभय पूज्य गुरु-शिष्योने पण विशेष आन्तरिक सन्तोष थयो. पाटणमा ए उत्सव उजवायो तेनी पहेला, ५-६ महिना पूर्वे न 'भारतीय विद्याभवन'नी स्थापना थई हती अने ए दिवसोमां एनी केटलीक योजनाओ थोडं थोडं मूर्तस्वरूप लई रही हती. भवनना संस्थापक अने संयोजक श्री मुन्शीजीना सादर आमंत्रणने वश थई हुं पण एना घडतरमा जे यथायोग्य सहकार आपवा प्रेरायो हतो तेनी केटलीक कल्पना प्रवर्तकजी महाराज तथा श्री चतुरविजयजी महाराजने ए समये म्हें आपी हती जे सांभळी वन्ने' जण बहु प्रसन्न थया हता. श्रीयुत मुन्शीजीना संवन्धमां, अन्यान्य जैन साधु वर्गनी जेम तेमनो पण एवो अभिप्राय बन्धायो हतो, के मुन्शीजीनुं मानस जैनसंप्रदाय तरफ ईर्ष्याभाव अने तिरस्कारात्मक विचार धरावनारं होई, एमणे पोतानी कृतिओमां जैन आचार्यों अने जैन व्यक्तिओने इरादापूर्वक क्षुद्रचरित्रवाळी आलेखित करवानो प्रयत्न कर्यो छे. ते संवन्धमां पण म्हें तेमने श्री मुन्शीजी साथे म्हारो जे जातनो अंगत संबन्ध छे अने. ए संवन्ध द्वारा एमना मानसनुं म्हने जे निखालस दर्शन थयुं छे ते विशेनी केटलीक हकीकतोनुं स्पष्टीकरण करवाथी, प्रवर्तकजी महाराजना उदार मनने केटलोक संतोष थयो हतो अने मुन्शीजीना विषयमा तेमनो आदरभाव वध्यो हतो; अने तेथी जे वखते मुन्शीजी तेमना दर्शन निमित्ते सागरगच्छना उपाश्रयमां गया ते वखते तेमणे बहु ज प्रसन्न अने उदार मने तेमनी साथे वार्तालाप को हतो. पाटणमा उजवाएला ए हेमसारखतसत्र'ना उत्सव पछी थोडाफ ज महिना बाद, एटले सं. १९९६ ना कार्तिक कृष्ण पक्षमा, श्री चतुरविजयजी महाराजनो, थोडाक ज दिवसनी व्याधिना योगे, स्वर्गवास थई गयो अने तेथी ए उत्सव प्रसंगे जे तेमना चरणवन्दन करवानो लाभ म्हने मळ्यो ते म्हारा भाटे अन्तिम निवडयो. संवत् १९५६ नी सालथी पाटणना जैन भंडारोने सुव्यवस्थित करवानी प्रवृत्ति श्री चतुरविजयजी महाराजे जे आरंभी हती ते सं० १९९६ मा थएला तेमना जीवनना अन्तसमय सुधीएटले के पूरा ४० वर्षसुधी तेमणे ए ज्ञानोद्धारनी सम्यक् क्रियाप्रवृत्ति चालू राखी हती. आवी रीते एकाग्र भावथी अने एकान्त रूपथी अर्धी शताब्दी सुधी सतत ज्ञानोपासनामां निमग्न रहेनार अने अविरत श्रम सेवनार अन्य कोई जैन साधुना जीवननो म्हने परिचय नथी थयो.
SR No.010638
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy