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________________ २३ मुनिश्रीचतुरविजयजी स्मरण-सुमनांजलि मनन-चिन्तन आदिनी जे काई नवी दृष्टि प्राप्त थई हती अने तेना लीघे ए विषयो तरफ पण मन खूव आकृष्ट थतुं हतुं. तेथी जैनवाङ्मयनी विशेष प्रसिद्धिनी कोई प्रवृत्ति हाथमा लई तेने ज जीवनर्नु प्रधान कार्यक्षेत्र बनाववानी पण भावना तेटली ज वलवती थयां करती हती. - पूनामां जतां साथे ज म्हने एक विशिष्ट प्रतिभाशाली अने विचारशील युवक जैन वन्धुना समागमनो लाभ मळ्यो जेमणे तरतमा ज पूनानी फर्ग्युसन कॉलेजमा रहीने जैन तत्त्वज्ञाननो मुख्य विषय लईने वी. ए. नो अभ्यास पूरो कर्यो हतो, अने त्यांनी ज फिलोसॉफिकल सेमिनारनी स्कॉलशिप मळवाथी जैन तत्त्वज्ञाननो विशेष अभ्यास करवानी दृष्टिए त्यां फेलो थईने रह्या हता. ए युवक बन्धु ते म्हारा एक प्रिय शिष्य अने प्रियतर मित्र जेवा भाई श्री रसिकलाल छोटालाल परीख-जेओ असारे अमदाबादनी सुप्रसिद्ध गुजरात विद्यासभा' (जूनी 'गुजरात वाक्युलर सोसायटी') ना उच्चतर अध्ययन अने संशोधन विद्याविभागना मुख्य अधिष्ठाता (डायरेक्टर) छे. भाई श्री रसिकलाल गुजरातना समर्थ चिन्तकोमांना एक विशिष्ट चिन्तक छ, एमना चिन्तनशील स्वभावे अने प्रगतिवादी विचारे, म्हारा मन उपर अने जीवन उपर केटलीक विशिष्ट असरो करी छे. पूनानुं कार्यक्षेत्र छोडीने 'गुजरात विद्यापीठ'नी सेवामां जोडावा माटे म्हें जे निर्णय कर्यो तेमां अनेक अंशे प्रेरकरूप थनार म्हारा ए सुहृद् वन्धुजन छे. पूनामां गया पछी म्हें म्हारा ए प्रतिभाशाली युवक मित्रने साहित्यिक कार्यमा सहकारी बनाव्या. भांडारकर रीसर्च इन्स्टीट्यूटना जैन ग्रन्थोनुं विस्तृत सूचिपत्र बनाववामा, 'जैन साहित्य संशोधक'नु संपादन करवामां, तेम ज वीजा तेवा संशोधनात्मक निबन्धो विगेरे लखवामां, म्हने तेमनो घणो उपयोगी सहकार मळवा लाग्यो. ए वखते अमे पूनाना ए भांडारकर इन्स्टीट्यट जेवीज कोई संस्था गुजरातमां स्थपावी जोइए अने महाराष्ट्रनी माफक गुजरातमां पण ऐतिहासिक अन्वेषण-संशोधन आदिनुं कार्य थर्बु जोईए; तेम ज महाराष्ट्रीय विद्वानो अने समाजसेवको नेवा गुजरातमां पण विद्वानो अने सेवको तैयार थवा जोईए - इत्यादि प्रकारना अनेक मनोरथो कर्यां करता. केटलांक कौटुंबिक कारणोने लईने पछी भाई श्री रसिकलालने अमदाबाद जवान थयुं अने त्यां साक्षरवर्य श्री रामनारायण वि० पाठक विगैरे मित्रोनी साथे जोडाई एक शिक्षण कार्य करनारी संस्थानी स्थापना द्वारा तेमा जोडाया. पूनामां आ रीते म्हारं कार्य चालू ज हां, ते दरम्यान म्हने लोकमान्य तिलकना परिचयमा आववानो अनेरो लाभ मळ्यो. ते साथे महिलाविश्वविद्यालयना संस्थापक महर्षितुल्य प्रो. कर्वेना समागमनो पण प्रसंग मळ्यो. सर्वटस् ऑफ इन्डिया सोसायटीना एक वार्षिकोत्सव प्रसंगे महात्माजी पूनामां आव्या त्यारे तेमने पण प्रत्यक्ष मळवानो योग बन्यो अने तेमनी साथे म्हारा पोताना जीवनलक्ष्य विषे केटलीक सामान्य चर्चा करवानो पण अनपेक्षित अवसर मळ्यो. महात्माजीए - अमदावादमा स्थापेला सलाग्रह-आश्रम विषे केटलीक विगतो जाणवा-सांभळवामां आवी हती, तेथी कोक कोक वखते ए सत्याग्रह-आश्रममा जईने महात्माजीनी प्रेरणा नीचे ज, कोई सेवाकार्यमां जोडाई जवानो तरंग पण मनमा आवी जतो हतो. ए दृष्टिए म्हें केटलाक मित्रो साथे विचारविनिमय करवाना उद्देशथी पत्रव्यवहार पण चालू को हतो. ए रीते मनमा अनेक प्रकारना विचारोनी सतत भरती-ओट थयां करती हती, ते वखते ज, १.९२० ना ऑगष्टनी १ ली तारीखे महात्माजीए भारतने स्वतंत्र करवाना हेतुथी ब्रिटीश सरकार
SR No.010638
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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