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________________ .. मुनिश्रीचतुरविजयजी सरण-सुमनांजलि जवाथी म्हने काई-काई नर्बु जाणवानु-विचारवान मळशे अने मनमा थला रहेता विचारमन्थनने कोई चोकस प्रकारतुं स्वरूप प्राप्त थई शकशे, एवी आशाथी म्हें पूना जवानो संकल्प कर्यो. घणुं करीने पोष वदमा के पछी माघ सुदमा प्रवर्तकजी महाराजे मुंबईथी विहार करी सुरत तरफ जवानो विचार कर्यो. परंतु घाटकोपर जोयु न हतुं तेथी मुंबईथी रवाना थई दादर, कुर्लाने रस्ते घाटकोपर गया. हुं पण तेमनी साथे ज हतो. म्हें तेमने तथा श्री चतुरविजयजी महाराजने म्हारो विचार पूना जोवा जवानो छे ए विषे खुल्ला मनथी वात करी. तेमणे म्हारो विचार सहानुभूतिपूर्वक सांभळ्यो. पूना अनेक दृष्टिए दर्शनीय स्थान छे, ए तो प्रवर्तकजी महाराज पण सारी रीते जाणता हता अने योग्य अवसर होत तो पोते पण पूना जवानुं पसन्द करत, एवी तेमनी इच्छा रहेती. एटले तेमणे म्हारा जवा माटे तो कशोय विरोध न कर्यो परंतु पोतानी पासे एवो कोई बीजो साधुः नथी के जेने म्हारी साथे तेओ मोकली शके; अने एम एकाकी तरीके म्हारं जq ए व्यक्तिनी घटिए तेमज समाजनी दृष्टिए बहु उचित न देखाय; तेथी तेमना मनने, म्हने मुक्तमने रजा आपवामां संकोच पण जरूर थयो हतो. पेला वीजा समुदायमांथी एक अन्य वृद्ध साधु म्हारी साथे आववा बहु उत्सुकं हता, परंतु तेमनो स्वभाव वधारे उग्र अने तोरी हतो तेथी तेमने साथे राखवानी म्हारी इच्छा न थई. एक-वे दिवसनी विचारणा पछी अने चर्चा पछी प्रवर्तकजी महाराजे म्हने प्रसन्नता पूर्वक जवानी रजा आपी अने घाटकोपरना अमुक गृहस्थोने म्हने पूना सुधी पहोंचाडी देवानी योग्य भळामणो करी. तेओ पोताना अन्य शिष्यपरिवारसाथै घाटकोपरथी विहार करी अन्धेरी तरफ विदाय थया. हुं थोडा दिवस वधु घाटकोपर रोकायो. ए रीते साधु तरीके एकाकी रहेवानो म्हने जीवनमा पहेलवहेलो प्रसंग प्राप्त थयो. थोडाक दिवस तो मनमा अनेक प्रकारना संकल्प-विकल्पो थयां का. एकाकी रहे, सारं के नहिं एनी विचारणामां मन मुंझातुं रखु. छेवटे पूना गया पछी भविष्यनो विशेष विचार करवानो मने निर्धार कों अने हुं घाटकोपरथी पूनाना मार्गे रवाना थयो. घाटकोपरना गृहस्थोए रस्तामा साथी तरीके एक नोकर जेवा माणसने मोकली आप्यो. ठाणा, पनवेल, लोणावला थई, रस्तामा कार्लानी गुफाओ जोई, ८-१० दिवसे पूना पहोंच्यो. त्यां तेना आगला ज वर्षे स्थापित थएल 'भारत जैन विद्यालय नॉमना बॉर्डिंग हाउस के-जे फर्ग्युसन कॉलेज रोड उपर आवेल रहाते करना बंगलामां खोलवामां आवेल हतुं-तेमा मुकाम कों. वॉर्डिंगना एक कार्यवाहक भाई जे म्हने मुंबईमां ज परिचित थया हता तेमणे म्हारी त्यां रहेवा करवानी थोडीक व्यवस्था करी आपी. पूनामां रहीने, भांडारकर इन्स्टीट्यूटने सहायतादि करवानी विविध प्रवृत्तिओमां, भारत जैन विद्यालयने विकसाववानी विविध योजनाओमा, तेम ज जैनसाहित्य संशोधक समाज'नी स्थापना करीने ते द्वारा संशोधनात्मक उच्च प्रतिनुं त्रैमासिक अने तेवु अन्य साहित्य प्रकट करवानी बहुमुखी दिशाओमां, जे जे प्रयासो थया तेनी विगतमां उतरवानो अहिं अवसर नथी; फक्त एटलं ज ए विपे प्रासंगिक कहेवार्नु उचित छे के ए बधी प्रवृत्तिथी हुँ पू० प्रवर्तकजी महाराज तथा श्री चतुरविजयजीने यथावसर परिचित राखतो हतो अने तेओ पण पत्रद्वारा ए वधु जाणी-सांभळीने सदा पोतानो प्रसन्नभाव प्रकट करता रहेता हताः तेम ज म्हने अपेक्षित पुस्तको विगैरे मोकलता रहीने यथायोग्यं सहायता आपता रहेता हता.
SR No.010638
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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