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________________ १७ मुनिश्रीचतुरविजयजी स्मरण-सुमनांजलि रूढिप्रिय मानसना वळणवाळो मनातो हतो. खास करीने ते वखते प्रसिद्धिपामेल लालन-शिवजीने संघबहार करवा-करावारूप झगडा अंगे ए मेळो मळ्यो हतो. लगभग एक महिनासुधी ए सम्मेलन चाल्युं हशे. छेवटे केटलाक मतभेदोनो निराकरण करवामां आव्यो अने ते अंगेना सर्व सम्मतिथी केटलाक प्रस्तावो पण करवामां आव्या. ए सम्मेलनमा एक प्रस्ताव आ पंक्तियोना लेखक तरफथी पण रजू करवामां आव्यो हतो (जेनो विपय अत्यारे स्मरणमां नथी) जे सर्वानुमते स्वीकारायो हतो. . ___ सम्मेलननी समाप्ति बाद अन्य - अन्य मुनिमंडळो अन्यान्य स्थानोमा चातुर्मास करवा माटे विदाय थयां. अमारु मंडळ वडोदरामा ज रघु, अने साहित्यिक संशोधन संपादनना-कार्यमां विशेष भावे प्रवृत्त बन्यु. वडोदरामा अमने साहित्य-संपादनना कार्यमा एक सुयोग्य साक्षर भावकनो विशिष्ट सहकार मळ्यो. ए साक्षर श्रावक ते वर्गवासी श्री चिमनलाल डाह्याभाई दलाल एम्. ए. जेओ वडोदरा राज्य तरफथी प्रकट थती 'गायकवाडसू ओरिएन्टल सीरीझ'ना मूळ संयोजक अने आद्य-प्रधान संपादक हता. तेमणे अमारा सहकारथी अनेक जैन ग्रन्थो पण ए ग्रन्थमालामा प्रकट करवा माटे हाथमां लीधा. तेमनी प्रेरणाथी पू० श्री चतुविजयजीए जैन महाकवि यशःपालरचित 'मोहराजपराजय' नामना नाटकनुं संपादन कार्य हाथमां लीधुं अने म्हें पण सोमप्रभाचार्यकृत प्राकृत भाषाना महान् ग्रन्थ 'कुमारपालप्रतिबोध' नुं संपादन कार्य स्वीकार्यु. भाई श्री दलाल सार्थना अमारा आवा साहित्यिक सहकारना मीठा स्नेह-संबन्ध विषेनां मधुर स्मरणोतुं थोडंक वर्णन, प्रस्तुत ग्रन्थमाळामां हमणा ज प्रसिद्ध थएल 'पउमसिरिचरिउ' ना प्रास्ताविक वक्तव्यमा आप्यु छे तेथी तेनी अहिं पुनरुक्ति नथी करतो. पाटणना भंडारोनु अवलोकन करती वखते, म्हारुं मुख्य लक्ष्य ऐतिहासिक साहित्यनी सामग्री संग्रहीत करवा तरफ रह्यु, ए म्हें उपर जणाव्युं छे. एज दृष्टिए पछी म्हें वडोदरानो ज्ञानभंडार पण जोयो अने म्हने तेमां पण विविध प्रकारनी इतिहासोपयोगी सामग्री भरी पडेली दृष्टिगोचर थई. ए सामग्रीने व्यवस्थित रीते संपादित करीने प्रकट करवानी म्हारी भावना थई जेनी पुष्टि पू० श्री चतुरविजयजी महाराजे बहु ज उत्साहथी करी. प्रवर्तकजी महाराजनो ऐतिहासिक विषय वरफ़ बहु ज अनुराग हतो अने म्हने पण एमनी ज वात्सल्य भरेली सहानुभूति अने सहायताने लीधे ए साहित्यनी बहुविध सामग्रीवें अवलोकन करवानो सुयोग मळ्यो; तेथी एमना ज शुभ नामथी अंकित एवी 'प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजी जैन ऐतिहासिक ग्रन्थमाला' ए नामनी श्रेणी द्वारा, म्हें ए सामग्री वाळां पुस्तकोने प्रकाशमां मूकवानो उपक्रम आरंभ्यो. विज्ञप्तित्रिवेणि, कृपारसकोश, शर्बुजयतीर्थोद्धारप्रवन्ध, जैनशिलालेखसंग्रह, जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, द्रौपदीखयंवर नाटक, जैनपट्टावलिसंग्रह- इत्यादि पुस्तकोना संपादन- संशोधनहुँ काम म्हें एक साथे हाथमा लीधुं. ए बधां पुस्तकोना प्रकाशन माटे आर्थिक सहायता मेळवबानुं तेम ज छापखाना विगेरेनी साथे /गोठवण आदि करवातुं सघळु, व्यावहारिक काम श्री चतुरविजयजी महाराजे उपाडी लीधुं हतुं. वडोदराना ए ५-७ महिनाना वसवाट दरम्यान 'विज्ञप्तित्रिवेणी' आदि ३-४ पुरतको छपाईने प्रकट जुओ 'पउमसिरिचरिउ' प्रास्ताविक वक्तव्य, पृष्ठ १० उपरनी टिप्पणी, घका०३
SR No.010638
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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