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________________ प्रास्ताविक कारखानाना कार्य उपर नजर राखी शकता नथी अने तेथी काममां केटलीक हानि थयां करे छे. मांटे जे भोजन अहिं ( कारखानाना रंसोडे ) थाय छे, ते लई लेवामां आपने शो दोष लागे एम छे ?' एम करीने तेने त्यांना भोजननो स्वाद लगाड्यो. चळीं पछी कछु के- 'आपने तीर्थना काम माटे अहिं तहिं खूब फर पड़े छे, तो ते भाटे सुखासन (पालकी) मां बेसीने जाओ-आओ तो तेथी कामनी वधारे सरळतापूर्वक देखरेख राखी शकायें' - एम कहीने तेमणे तेने पालकीमां बेसतो पण बनाव्यो. एवा प्रसंगे, मंत्री वस्तुपाल, कार्यप्रसंगथी, शत्रुंजय उपर आव्यो. ते पोताना नियमप्रमाणे न्हाई धोई, मुखे मुखकोश वान्धी, उघाडा पगे, मन्दिरमां देवपूजा करवा जतो हतो; ते वखते ए वृद्ध कर्मस्थायरक्षक पालकीमां वेसी, साथै १०-१५ माणसोनुं टोलुं लई, पर्वतनी नीचेना पालीताणा गाममां जतो हतो, ते मंत्रीनी दृष्टिये पड्यो, मंत्रिये पोतानी पासेना माणसने पूछयूँ के - 'ए कोण जाय छे ?' त्यारे तेनी आगळ चालता पुरुषे कथं कें - ए तो पेला मठपति यति छे जेने आप अहिं मोकल्या छे.' मंत्रिये जईने तरंत ज पालकी उभी रखावी अने पेला यतिने वंदन कर्या, पछी कां के - 'नीचे ( पालीताणामां ) कार्य पत्तावीने पाछा व्हेला पधारजो !' आ घटनाथी ते यति बहु ज लज्जित थयो भने नीचे जईने तेणे तो अनशन आदरी लीधुं. मंत्रिये तेने पर्वत उपर वोलाग्यो त्यारे तेणे कद्देवराज्यं के—'म्हें तो अनशन लीधुं छे, तेथी हवे आवी शकुं तेम नथी. एटला वधा यतियोमाथी चुंटीने म्हने तमे अहिं मोकल्यो; परंतु म्हारुं तो आचरण आवुं नीक. हुं आपने अने गुरुमहाराजने शी रीते हवे म्हारु म्हों वतावुं ? तेथी आप हवे ए माटे अन्य कोई कार्य - कर्तानी तपास करशो' विगेरे. पछी छेत्रढे ते यति उपर आवीने समाधिपूर्वक अनशनवडे मृत्यु पामी स्वर्गे गयो. मंत्रिये पोताना नगरमां आवीने गुरुमहाराजने ए वधी हकीकत 'कही जणावी. ते परथी गुरु उदयप्रभसूरिये मंत्रीने कछु के- 'हवे पछी कोई यति = साधुने चैत्यद्रव्यनी संभाळ राखवा माटे नियुक्त नहिं करवो जोईए. ते केवो आत्मार्थी हतो- छतां त्यां जई- एवो थई गयो हतो !' जैन मन्दिरोमां अने तीर्थस्थानोमा भेगा थता देवद्रव्यंनो दुरुपयोग प्राचीन समयथी केवो थतो आव्यो छे तेना माटे आ घटना-प्रसंग बहु ज विचार - प्रेरक छे. आ रीते जैन मन्दिरोमांना 'देव द्रव्य' ना, तेना कार्यकर्त्ताओ द्वारा थता विनाशना अनेक दृष्टान्तो जैन इतिहासमांथी मळी आवे छे. तेथी वर्तमान समयमां मुंबईनी प्रान्तिक राजसत्ताए 'धर्मार्थ द्रव्य' ना उपयोग अने संरक्षणनी दृष्टये जे नूतन विधान करवानी योजना विचारी छे तेना लाभालाभना पक्षमां विचार करनारा वर्गे, आवी ऐतिहासिक घटनाओनुं पण तारण काढवुं जोईये अने ते उपरधी कर्तव्याकर्तव्यनुं आलोचन - प्रत्यालोचन करवुं जोईये. ज्यारथी जैन मन्दिरोनी सृष्टि उभी थई छे अने जैन मन्दिरोमां द्रव्यनी वृष्टि थत्रा लागी छे त्यारथी ए. द्रव्यना रक्षण. अने स्वामिस्वनी चिन्ता देवमन्दिरोना कार्यवाहको सतावती आवी छे, ए वस्तु आवा ऐतिहासिक प्रसंगो उपरथी पण सिद्ध थाय छे, एटलं ज अहिं प्रस्तुत वक्तव्यनुं तात्पर्य छे. ७. उदयप्रभसूरिनी, अन्य प्रशस्ति-रचना वस्तुपालना सुकृतोनी प्रशंसा करनारी उदयप्रभसूरिनी रचेली बीजी एक प्रशस्ति उपलब्ध थाय उपर जणान्या प्रमाणे 'सुकृतकीर्ति कल्लोलिनी' नामधी अंकित छे. महामात्य वस्तुपाले शत्रुंजयना आदिनाथना मुख्य मन्दिर आगळ' स्थापत्यकलांना एक सुन्दरतम उदाहरणस्वरूप 'इन्द्रमण्डप' नामे सभामण्डप बन्धाव्यो हतो तथा तेनी बे. वाजुए पार्श्वनाथ अने महावीर जिननां वे सुशोभित चैलो कराव्यां हतां, तेमां स्थापित करवाना शिलालेखरूपे ए प्रशस्तिनी रचना करवामां आवी होय एम जाय छे. विविध प्रकारना छन्दोमां रचाएलं १७९ पद्योतुं ए एक सरस प्रशस्तिकाव्य छे; अने ते ६० का० २
SR No.010638
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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