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________________ ६१२ सिंघी जैन ग्रन्थमाला खूब ज वधार्यों हतो अने तेथी तेओ इंग्रेजी उपरांत, बंगाली, हिंदी, गुजराती भाषाओ पण खूब सरस जाणता हता अने ए भाषाओमां लखाएलां विविध पुस्तकोना वाचनमां सतत निमम रहेता हता. नानपणथी ज तेमने प्राचीन वस्तुओना संग्रहनो भारे शोख लागी गयो हतो अने तेथी तेओ जूना सिक्काओ, चित्रो, मूर्तिओ अने तेवी बीजी बीजी चीजोनो संग्रह करवाना अत्यंत रसिक थई गया हता. झवेरातनो पण ते साथे तेमनो शोख खूब वध्यो हतो अने तेथी तेओ ए विषयमा पण खूब ज निष्णात थई गया हता. एना परिणामे तेमणे पोतानी पासे सिक्काओ, चित्रो, हस्तलिखित बहुमूल्य पुस्तको विगेरेनो जे अमूल्य संग्रह भेगो को हतो ते आजे हिंदुस्थानना गण्यागांठ्या एवा संग्रहोमां एक महत्त्वनुं स्थान प्राप्त करे तेवो छे. तेमनो प्राचीन सिकाओनो संग्रह तो एटलो बधो विशिष्ट प्रकारनो छे के जेथी आखी दुनियामां तेनुं त्रीजु के चोथु स्थान आवे तेम छे. तेओ ए विषयमा एटला निपुण थई गया हता के म्होटा म्होटा म्यूजियमोना क्युरेटरो पण वारंवार तेमनी सलाह अने अभिप्राय मेळववा अर्थे तेमनी पासे आवता जता. • तेओ पोताना एवा उच्च सांस्कृतिक शोखने लईने देश-विदेशनी आवी सांस्कारिक प्रवृत्तियो माटे कार्य करती अनेक संस्थाओना सदस्य विगेरे बन्या हता. दाखला तरीके-रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेगाल, अमेरिकन ज्यॉग्राफिकल सोसायटी न्यूयॉर्क, वंगीय साहित्यपरिषद् कलकत्ता, न्युमिस्मेटिक सोसायटी ऑफ इन्डिया विगेरे अनेक प्रसिद्ध संस्थाओना तेओ उत्साही सभासद हता. साहित्य अने शिक्षण विषयक प्रवृत्ति करनारी जैन तेम ज जैनेतर अनेक संस्थाओने तेमणे मुक्त मने दान आपीए विषयोना प्रसारमा पोतानी उत्कट अभिरुचिनो उत्तम परिचय आप्यो हतो. तेमणे आवी रीते केट-केटली संस्थाओने आर्थिक सहायता आपी इती तेनी संपूर्ण यादी मळी शकी नथी. तेमनो खभाव आवां कार्योमा पोताना पिताना जेवो ज प्रायः मौन धारण करवानो हतो अने ए माटे पोतानी प्रसिद्धि करवानी तेओ आकांक्षा न्होता राखता. तेमनी साथे कोई कोई वखते प्रसंगोचित वार्तालाप थतां आवी बावतनी जे आडकतरी माहिती मळी शकी तेना आधारे तेमनी पासेथी आर्थिक सहायता मेळवनारी केटलीक संस्थाओनां नामो विगेरे आ प्रमाणे जाणी शकायां छहिंदु एकेडेमी, दोलतपुर (बंगाल), रु. १५०००) कलकत्ता-मुर्शिदाबादना जैन मन्दिरो, ११०००) तरक्की उर्दू बंगाला, ५०००) जैनधर्म प्रचारक सभा, मानभूम, ५०००) हिंदी साहित्य परिषद् भवन (इलाहाबाद), १२५००) जैन भवन, कलकत्ता, १५०००) विशुद्धानंद सरखती मारवाडी हॉस्पीटल, कलकत्ता, १००००) जैन पुस्तक प्रचारक मंडल, आगरा, ७५००) एक मेटर्निटीहोम, कलकत्ता, २५००) जैन मन्दिर, आगरा, ३५००) बनारस हिंदु युनिवर्सिटी, २५००) जैन हाइस्कूल, अंबाला, २१००) जीयागंज हायस्कूल, ५००० जैन गुरुकुल, पालीताणा, ११०००) जीयागंज लंडन मिशन हॉस्पीटल, ६०००) जैन प्राकृत कोश माटे, २५००) ए उपरांत हजार-हजार पांचसो-पांचसोनी नानी रकमो तो तेमणे सेंकडोनी संख्यामां आपी छे जेनो सरवाळो दोढ बे लाख जेटलो थवा जाय. साहित्य अने शिक्षणनी प्रगति माटे सिंघीजीनो जेटलो उत्साह अने उद्योग हतो तेटलो ज सामाजिक प्रगति माटे पण ते हतो. अनेकवार तेमणे आवी सामाजिक सभाओ विगेरेमा प्रमुख तरीके भाग लईने पोतानो ए विषेनो आन्तरिक उत्साह अने सहकारभाव प्रदर्शित कर्यो हतो. जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्सना सन् १९२६ मा मुंबईमां भराएला खास अधिवेशनना तेओ प्रमख बन्या हता. उदयपुर राज्यमा आवेला केसरीयाजी तीर्थना वहीवटना विषयमा स्टेट साथे जे घडो उभो थयो हतो तेमा तेमणे सौथी वधारे तन, मन अने धननो भोग आप्यो हतो. आरीते तेओ जैन समाजना हितनी प्रवृतियोमा यथायोग्य संपूर्ण सहयोग आपता हता परंतु ते साथे तेओ सामाजिक मूढता अने सांप्रदायिक कट्टरताना पण पूर्ण विरोधी हता. बीजा बीजा धनवानो के आगेवानो गणाता रूढीभक्त जैनोनी माफक, तेओ संकीर्ण मनोवृति के अन्धश्रद्धापोषक विकृत भक्तिथी सर्वथा पर हता. आचार, विचार के व्यवहारमा तेओ बहु ज उदार अने विवेकशील हता. तेमनं गृहस्थ तरीकेतुं जीवन पण बह ज सादु अने सात्त्विक हतुं. बंगालना जे जातना नवाबी गणाता वातावरणमा तेओ जन्म्या हता अने उछयों हता ते वातावरणनी तेमना जीवन उपर कशी ज खराब असर थईन हती अने तेओ लगभग ए वातावरणथी तद्दन अलिप्त जेवा हता. आटला म्होटा श्रीमान् होवा छतां, श्रीमंताईना खोटा विलास के मिथ्या आडंबरथी तेमो सदा दूर रहेता हता. दुर्व्यय अने दुर्व्यसन प्रत्ये तेमनो भारे तिरस्कार हतो. तेमनी स्थितिना धनवानो ज्यारे पोतामा मोज-शोख, आनन्द-प्रमोद, विलास-प्रवास, समारंभ-महोत्सव इत्यादिमां लाखो रूपिया उडावता होय छे त्यारे सिंधीजी
SR No.010638
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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