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________________ ८६ रहे । लोग दूर-दूर से आ रहे है। आचार्यश्री को भी यह सुझाव अच्छा लगा । अत प्रार्थना से पहले ही प्रवचन हो गया। प्रवचन के बाद प्रार्थना प्रारम्भ हुई। करीब आधी प्रार्थना हुई होगी 'कि चन्दनमलजी कठौतिया आये और प्राचार्यश्री के कान मे कुछ कहकर बैठ गये। एक साथ आचार्यश्री ने उच्च स्वर से प्रार्थना करनी प्रारम्भ कर दी। प्रार्थना समाप्त होने पर आचार्यश्री ने एक गहरा नि श्वास छोड़ते हुए कहा-अभी चन्दनमलजी ने सूचना दी है कि दिल्ली से टेलीफोन मे मत्री मुनि के देहावसान का समाचार प्राप्त हुआ है। सुनकर दिल को एक गहरा धक्का लगा। ऐसा धक्का कि जैसा कालूगरणी के स्वर्गवास पर लगा था। इसीलिए यह सुनते ही मैंने प्रार्थना जोर-जोर से गानी प्रारम्भ कर दी। आत्मा नहीं चाहती कि इस समाचार को सत्य मान लिया जाय । मत्री मुनि हमारे बीच मे नही रहे हैं यह कल्पना ही सूनी-सी लगती है । पर जो कुछ हो गया सो तो हो ही गया। अत आज के ध्यान को हमे उनकी स्मृति मे ही परिणत कर देना चाहिए। सभी. ने चार 'लोगस्स' का ध्यान किया। ध्यान के वाद आचार्यश्री ने दिवगत आत्मा के प्रति जो भाव व्यक्त किये वे वडे ही मार्मिक थे। यद्यपि रात्रि के कारण वे शब्दश तो नहीं लिखे जा सके पर स्मृति मे जो कुछ रहा वह यह था-मत्री मुनि सचमुच शासन के स्तम्भ थे। उनके गुण अवर्णनीय थे। उनके देहावसान से जो स्थान रिक्त हुआ है वह पुन भरना वडा कठिन है । उन्होने मुझे आचार्य-पद की प्रारम्भिक अवस्था मे जो सहयोग दिया, उसे कभी भुलाया नही जा सकता । मे जानताहू उन्होने सतो मे तथा श्रावको में मेरे प्रति किस प्रकार श्रद्धा भरी है । उनका धैर्य अतुलनीय था। वात को पचाने की उनकी क्षमता तो सचमुच अकल्पनीय थी। जो वात नही कहने की होती वह हजार प्रयत्नो के बाद भी कोई उनसे नहीं सुन सकता था।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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