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________________ १७-१-६० रात्रि के पिछले प्रहर में जब हम गुरु वन्दन के लिए पहुचे तो आचार्यश्री पूछने लगे – स्वाध्याय किया था ? - हम-हा पातजल योग दर्शन का स्वाध्याय भी किया था और मुनिश्री नथमलजी के पास वाचन भी किया था आचार्यश्री - सबको याद है ? हम-हा, हम पाच सहपाठियो मे प्रायः सभी को याद है ? आचार्यश्री — आजकल स्थान की सुविधा नही रहती है अन्यथा मैं अपने पास उसका अध्ययन करवाता । हमारे लिए इससे बढकर सोभाग्य की क्या बात हो सकती थी कि हम आचार्यश्री के पास अध्ययन करें । इस कल्पना ने ही हमारे मन मे अध्ययन के प्रति एक नई प्रेरणा भर दी । यहा से विहार कर अगले गाव जा रहे थे तो वीच मे मलावन नाम का एक गाँव पडता था । पिछली बार जब हम यहा ठहरे थे तो यहाँ एक अणुव्रत समिति का गठन भी हुआ था। आज भी सयोजक महोदय ने जो यहाँ की माध्यमिक स्कूल के प्राध्यापक भी है बहुत आग्रह किया, कुछ देर तो आपको यहा रुकना ही पड़ेगा । उनके आग्रह पर आचार्यश्री ने छात्रो को कुछ सवोध दिया, तदनन्तर आभार प्रदर्शन करते हुए प्राधानाध्यापक कहने लगे — मैंने बार-बार अणुव्रत के नियमो को पढ़ा है और जितनी बार मैं उन्हे देखता हू विचार आता है -प्रणुन्नत क्या है - मनुष्य का एक मानदण्ड है । जो व्यक्ति इन सारे नियमो को ग्रहरण कर लेता है वह वास्तविक मानव है । जो आधे नियमों को ग्रहण करता है
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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