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________________ होते नही देखकर एक साधु ने दुवारा शब्द-सकेत करना चाहा । पर आचार्य श्री ने कहा-यह अनवस्था अच्छी नहीं है । अतः वे भी चुप रह गए । इतने मे तो हम लोग भी पहुच गए। आचार्य श्री के मुख-मुकुर पर उनकी आत्मा का जो प्रतिविम्ब था, उसे देखकर अनेक आशकाए खड़ी हो गई। कुछ निवेदन करें इससे पहले ही आचार्यश्री ने उपालम्भ दे दिया। क्यो शब्द नहीं सुना था क्या ? शब्द सुनकर भी दूसरे कार्यो मे लगे रहते हो तो फिर उसकी प्रामाणिकता का क्या आधार रह जाता है ? आज एक बार शब्द कर देने पर दूसरी बार और सकेत करने की आवश्यकता रह जाती है, तो कल फिर तीसरी बार की भी अपेक्षा क्यो नही होगी? जो कार्य जिस नियत समय पर करना चाहिए उसमे विलम्ब नही होना चाहिए । वस प्राचार्य श्री का इतना उपालम्भ तो काफी था। अब जल्दी से हमारी ओर से ऐसा प्रमाद नहीं होगा, ऐसा विश्वास है । प्रमाद हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है । वह सकारण भी हो सकता है । पर एक नेता उसे कैसे क्षम्य कर सकता है ? प्रतिक्रमण के वाद मिश्रजी आ गए। उनसे अणुव्रत के प्रसार के बारे में काफी लम्बी चर्चा चली। मिश्रजी का सुझाव था कि हमे अपने कार्य क्षेत्र का विभाजन कर देना चाहिए। जितना भी क्षेत्र हम लेना चाहे उसे पाठ-दस या इससे कम अधिक विभागो मे बाट कर एक-एक साधु-दल को तथा कुछ गृहस्थ कार्यकर्तामो को अलग-अलग उत्तरदायित्व देकर उनमे बैठा देना चाहिए। क्योकि एक वार आचार्यश्री या साधु-साध्वी वर्ग जिस क्षेत्र में काम करता है वहा पर फिर उचित देख-रेख या मार्ग-दर्शन नहीं रहे तो किया हुमा कार्य पुन विस्मृत हो जाता है। अत. जो भी कार्य-क्षेत्र हम चुने वहा पर सातत्य रहना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक बार उधर गए और फिर लम्बे समय के लिए उसे भूल ही गए। अच्छा तो यह हो कि जो दल जिस क्षेत्र मे कार्य करता है उसे पाच-चार वर्षों तक वही रहने
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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