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________________ ५३ वकील - वाह ! ऐसा भी कभी हो सकता है । हमारा गृहस्थो का भी तो अपना धर्म होता है । कोई अतिथि हमारे घर आए और हम उसकी अच्छी तरह से सेवा नही करें तो हम अपने धर्म से स्खलित नहीं हो जाएगे ? आचार्य श्री - पर हमारे लिए भोजन बनाकर देने से हम अपने धर्म से स्खलित नही हो जाएँगे ? वकील-- हमारे घर मे जो अच्छी से अच्छी चीज होगी वही हम आपको देंगे। आचार्यश्री - यह तो ठीक है कि आपका धर्म सेवा करना है पर वैसी सेवा करना तो नही कि जिससे हमारा नेम-धर्म टूटता हो । इसीलिए हमारे लिए कोई चीज करवाने की आवश्यकता नही है । वकीलवही देंगे । आचार्य श्री -- ऐसा नही । हम आए हैं इसलिए श्राप हलुआ बनाए वह भी हमे स्वीकृत नही है। वकील नही, नही । आज मंगलवार है । इसलिए हम लोग नमक नही खाते | हम हलुआ बनाएगे और आपको हलुआ ही देगे । अच्छा तो आपका सामान कहा है ? आचार्य श्री -- हमारा सामान बस इतना ही है जितना आप हमारे पास देख रहे हैं । वकील – सर्दी मे इतने से कपडो से आपका काम चल जाता है 1 आचार्य श्री --- आप देख लीजिए चल ही रहा है न ! हम लोग न तो इससे अधिक सोमान रखते है और न पैसा भी रखते है । यहा तक कि अपने पास करण भर भी धातु नहीं रखते। क्या आप हमे कुछ भेंट देंगे ? वकील - हा, आप कहेगे वही भेट दे सकते है । - - अच्छा। तो आज हम भी हलुआ खाएगे और आपको भी -
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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