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________________ न पोष महीने जैसी सर्दी भी। अत' यह कहना उपयुक्त रहेगा कि आज तो चैत्र मास जैसा सुहावना मौसम हो गया है। दोनो ने इस मध्यरेखा को स्वीकार कर लिया और हँसने लगे । यद्यपि यह एक मृदु-विवाद ही था पर बहुधा इस प्रकार की छोटी-छोटी घटनाओ को लेकर परस्पर काफी विवाद हो जाता है। उस स्थिति में यदि मध्यम-मार्ग अपना लिया जाय तो विवाद से काफी बचाव हो सकता है । यही सकेत बडी देर तक चेतना को झकझोरता रहा। ___ शाम को गुरु वन्दन के समय जब आचार्यश्री कमरे से बाहर वरामदे में आये तो देखा जिस ओर हम आचार्यश्री के बैठने की चौकी लगा रहे थे उस ओर साधुनो ने अपने कपडे सुखाने के लिए एक डोरी वाध रखी है। उस पर कुछ कपडे भी सुखाये हुए थे । मैं जल्दी-जल्दी कपडो को हटाकर रस्सी खोल ही रहा था कि आचार्यश्री कहने लगे-इसे क्यों खोलते हो? मै—यहा चौकी रखनी है । अत इसे खोल रहा हूँ। आचार्यश्री-तब फिर इसके वाधने का क्या अर्थ होगा? ___ मैं अभी एक मिनट मे इसे उधर वाध दूगा। आचार्यश्री-इधर से खोलोगे, उधर बाधोगे इससे क्या लाभ ? हमारे उधर बैठने मे कुछ हानि तो नहीं है ? तब हम ही उधर बैठ जाएगे। इसे पड़ी रहने दो। मैं तो आदेश-विवश और भक्ति-भावित हो असमजस मे पड गया । करना तो आखिर वही पडा जो आचार्यश्री ने आदेश दिया। __ प्रतिक्रमण के पश्चात् हमारी अध्ययन की गतिविधि के बारे मे पूछते हुए आचार्यश्री कहने लगे-षड्दर्शन चल रहा है ? हमने सभी ने हामी भरी तो पूछने लगे-वेदान्त को षड्दर्शनो मे--(१) बौद्ध (२) न्याय-वैशेषिक (३) साख्य (४) जैन (५) जमनीय (६) चार्वाक मे से किस दर्शन मे गिनोगे? किसी ने कहा नैयायिक-दर्शन में तो किसी ने कहा-जमनीय दर्शन मे। पर आचार्यश्री अपना सिर हिला-हिलाकर
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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