SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ की अनुपस्थिति में आहार करना अधिक पसन्द करते है । ऐसे अवसरों पर प्राचार्यश्री स्वय ही कमरे के बाहर घूमने चले जाते है। पर आज तो बाहर भी इतनी जगह नही थी कि आचार्यश्री घूम सके । वहा यात्री लोग ठहरे हुए थ । निरुपाय होकर हमे वही आहार करना पडा । हा आचार्यश्री ने शायद ही हमारी ओर आख उठाकर देखा हो । वे अपने लेखन मे व्यस्त हो गये। वर्षा अव भी थमने का नाम नहीं ले रही थी। मौसम खराव तो था ही अत भीग जाने से साध्वी प्रमुखा लाडाजी को थोडा ज्वर हो गया। अपनी प्राचार-विधि के अनुसार हम लोग-साधु-साध्विया रात्री मे एक स्थान पर नहीं ठहर सकते थे। पहले सोचा था शायद वर्षा थम जाएगी तो हम आगे चले जाएंगे। साध्वियो को तो यहा रुकना ही पडेगा । पर दोपहर के दो वजे तक वर्षा नहीं रुकी। अन्त मे वर्षा होते हुए भी दोपहर को हमे पचमी समिति के निमित्त से अगले गाव के लिए प्रस्थान कर देना पडा। आचार्यश्री ने सब साधुओ को सकेत कर दिया वाहर ठड हो सकती है। अत सभी साधु अपना-अपना सरक्षरण कर लें। तदनुसार हमने अपना-अपना उचित प्रबन्ध कर लिया। जव तक मनुष्य नहीं चलता है तब तक सर्दी और हवा लगती है । पर जव चल पडता है तव सव कुछ सहन हो जाता है । शब्द शास्त्र मे आज जैसे दिन के लिए दुर्दिन का प्रयोग आता है। पर हम क्रमश अपने लक्ष्य के निकट पहुच रहे थे । अत हमारे लिए वह सुदिन ही हो गया। मन मे थोडाथोडा डर अवश्य लगता था। राजस्थान अभी बहुत दूर है, हमे अभी बहुत दूर चलना है, कही बीच मे किसी के गडबड हो गई तो बडी कठिनाई हो जाएगी। पर न जाने कौन-सी अज्ञात शक्ति हमे सकुशल अपने लक्ष्य की ओर धकेल रही थी। मार्ग तो वडा ही खराव था। यदि सडक न हो तो इस भूमि पर
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy