SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१-१२-५६ सूर्योदय होते ही यहा से प्रयाण कर आचार्यश्री राजर्षि पुरुषोत्तमदासजी टण्डन के घर पधारे । टण्डनजी काफी दिनो से अस्वस्थ होने के कारण यहा आने में असमर्थ थे। अत आचार्यश्री स्वय ही उनके घर पधार गये । वहा कुछ देर तक ठहर कर आचार्यश्री ने उन्हे शान्तसुधारस सस्कृत गेय काव्य की कुछ गीतिकाए सुनाई। मुनिश्री नथमलजी ने वहा कुछ आशु काव्य भी किया। टण्डनजी का जीवन अत्यन्त सादा तथा सरल है। हिन्दी के तो वे एक प्रवलतम समर्थक हैं । हिन्दी की छोटी-सी अशुद्धि भी उन्हे सह्य नहीं होती। आज भी जब पारमार्थिक शिक्षण संस्था की शिक्षार्थिनी वहिनो ने अपने सधे हुए समवेत स्वरो मे आचार्यश्री द्वारा रचित एक गीतिका उन्हे सुनाई तो उन्होने झट से उसमे से एक त्रुटि को पकड लिया । बहने गा रही थी "अणुव्रत है सोया ससार जगाने के लिए, जन-जन मे नैतिक निष्ठा पनपाने के लिए।" वे पद्य के अन्तिम पद 'लिए' मे 'लि' को दीर्घ ले रही थी टण्डनजी ने उनकी ओर लक्ष्य कर कहा–बहिने 'लिए' मे 'लि' को दीर्घ क्यो ले रही हैं। इतनी अस्वस्थ अवस्था में भी उनकी जागरूकता को देखकर हम सबको बडा आश्चर्य हुआ । यद्यपि हम सब प्रतिदिन यह पद्य सुना करते थे, पर हमारा ध्यान उधर नहीं गया । आज अचानक इस त्रुटि की ओर टण्डनजी ने सवका ध्यान आकृष्ट कर लिया। फिर तो बहिनो ने अपना उच्चारण शुद्ध कर पुन उस गीतिका को दोहराया। टण्डनजी मानो हर्ष-पारावार मे हिलोरे लेने लगे। उनको यह गीत बहुत ही रुचिकर लगा। कहने लगे--क्या यह प्रकाशित नहीं हुआ है ? सह-यात्रियो ने
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy