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________________ वह गोपीगज आया और निवेदन किया कि आज तो आपको हमारे गाव मे ठहरना ही होगा। आचार्यश्री ने उसे सारा प्रोग्राम बताया और कहा-तुम ही बताओ आज हम तुम्हारे गाव मे कैसे रुक सकते हैं ? उसने आग्रह किया कुछ भी हो आज तो आपको हम गरीबो पर दया करनी ही होगी। यह ठीक है कि हमारे गाव मे महल नहीं हैं। पक्के मकान भी नहीं हैं, टूटी-फूटी झोपडिया है । पर आपको उन्हे पवित्र करना ही होगा। हम सारे साधुओ की तथा यात्रियो की व्यवस्था कर लैंगे। बहुत देर तक यह आग्रह अनुनय चलता रहा । अन्त मे वीच का मार्ग निकाला गया कि थोडी देर के लिए प्राचार्यश्री सडक पर रुक जाए। गाव के सभी लोग वहा आकर दर्शन कर ले तथा आचार्यश्री उन्हे थोड़ा उपदेश दें। गोवर्धन सतुष्ट हो गया। तदनुसार आचार्यश्री विहार करते हुए कुछ देर के लिए सड़क पर ठहरे और लोगो को उपदेश दिया। यहा लोग अधिकतर शाकाहारी ही है। अत. आचार्यश्री ने उन्हे प्याज, बैंगन आदि अनन्तकाय तथा बहुबीज शाक खाने का त्याग दिलवाया । कुछ बहनो ने महीने में दो दिन रात्री-भोजन का भी परित्याग किया। प्रवचन के बाद ग्रामवासियो ने फिर निवेदन किया-आचार्यजी कुछ देर के लिए तो हम गरीबो के घरो को भी पवित्र कीजिए। प्राचार्यश्री ने कहा-भाइयो | हमारे लिए गरीब और धनवान का कोई भेद नहीं होता । अभी समय बहुत थोडा है अत हम यहा अधिक नहीं ठहर सकते । अन्यथा मुझे आपके गाँव मे जाने से खुशी ही होती। ग्रामवासी-महाराजजी कम-से-कम गन्ने तो लीजिए और वे अपने साथ लाये हुए गन्ने के बडे-बडे गट्ठरो को उठाने लगे। ___ आचार्यश्री-हम गन्ने नही ले सकते । क्योकि इसमे सार तो कम होता है । निस्सार फेंकने की चीज अधिक होती है।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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