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________________ पुस्तक के प्रति प्रस्तुत पुस्तक का विषय इसके नाम से स्पष्ट है । इसमे वह गाथा है जिसका सम्बन्ध जन-जन से है और इसमे वह श्लोक है, जिसका सम्बन्ध जन-मन्दिर की परिक्रमा करने वाले पुजारी से है। प्राचार्यश्री तुलसी भगवान् के मंदिर की परिक्रमा करने वाले नहीं हैं । उन्होने परिक्रमा की है जनता की और इसलिए की है कि उसमें सोया हुआ भगवान् जाग जाए। उन्होंने अपने मन्दिर में विराजमान भगवान् को जगाया है और जनता को बताया है कि उसका भगवान् उसकी अपनी आराधना से ही जाग सकता है। इस पुस्तक का प्रधान स्वर अपनी आराधना का स्वर है, उसे लय में बांधने का प्रयत्न मुनिश्री सुखलालजी ने किया है। वे अपने प्रयत्न मे सफल भी हुए हैं। भाषा की सरलता, प्रवाह मोरा बात को प्रस्तुत करने का ढंग उनका अपना है, पर सफलता के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है। उसके लिए घटना-स्रोतों की सप्राणता अधिक अपेक्षित है । वह प्राचार्यश्री के परिपार्श्व मे सहज प्राप्त हुई है। आचार्यश्री जैन मुनि हैं । अतः पादविहार उनका सहज-क्रम है। उन्होने अपनी चरण-धूलि से हिन्दुस्तान के बहुत बड़े-भू-भाग का स्पर्श किया है । उस स्पृष्ट-क्षेत्र मे बिहार, उत्तर प्रदेश, पजाब और राजस्थान भी हैं । प्रस्तुत पुस्तक में इन्ही प्रदेशो से सम्बन्धित विवरण है । प्राचार्यश्री ने वि० स० २०१६ मे सुदीर्घ पाद-विहार किया था। उस वर्ष कलकत्ता से राजस्थान लगभग दो हजार मील की यात्रा हुई थी । यात्रा का प्रारम्भ मृगसर बदि १ से हुआ था और उसकी सम्पूर्ति
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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