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________________ १८ अनुकूल प्रभाव नहीं डालेगा । कुछ देर तक वह मधुर वाक्युद्ध होता रहा । आचार्यश्री वडी शाति से उस विवाद का रस पी रहे थे । पर आज कोई अन्तिम निश्चय नही हुआ । दूसरे प्रहर आज आचार्य श्री स्वय सब यात्रियो के घर भिक्षा के लिए गए । रात्री के प्रथम प्रहर मे अणुव्रत समिति के उपाध्यक्ष रामचन्द्रजी जैन बनारस से अपने भूतपूर्व प्रोफेसर डा. प्राणनाथ विद्यालकार को अपने साथ लेकर आए । प्रार्थना के पश्चात् उनसे बाते करते-करते प्राय. दूसरा प्रहर ही आ गया । डा० प्राणनाथ एक सुपरिचित इतिहासज्ञ व्यक्ति है । अर्थशास्त्र मे उन्होने डॉक्टरेट किया है । वैसे पहले वे अर्थशास्त्र के प्राध्यापक भी रह चुके हैं । सुमेरियन आदि प्राचीन लिपियो के वे अच्छे विशेषज्ञ है । उनका आचार्यश्री से यह पहला ही परिचय था । पर पहली ही बार मे उन पर आचार्यश्री के व्यक्तित्व की अच्छी छाप पडी। व कहने लगे मैं अपने जीवन में दो ही व्यक्तियो से विशेष प्रभावित हू । पहले व्यक्ति श्री गणेशप्रसादजी वर्णी तथा दूसरे व्यक्ति प्राचार्य तुलसी है । बल्कि आज मुझे जो शान्ति मिली है वह तो अभूतपूर्व ही है । जैन सस्कृति और धर्म के बारे में चर्चा करते हुए उन्होने कहा--जैन धर्म भारत का सबसे प्राचीन धर्म है । आर्यों के आगमन से पूर्व यहा जो लोग बसते थे वे सम्भवत जैन ही थे। जैन आगमो पर अपना अभिमत व्यक्त करते हुए उन्होने कहा—जैन आगम विश्व वाड्मय के अमूल्य रत्न है। भाषा की दृष्टि से वे वेदो से भी प्राचीन ठहरते है। बल्कि कुछ आगम तो बहुत ही पुराने है । तथ्य की दृष्टि से भी उनमे अनेक रत्न भरे पड़े हैं । उदाहरण के लिए वृहद् कल्प सूत्र को ही लें, अगर वह मेरे सामने नही होता तो मेरा थीसिस ही अधूरा रह जाता । वास्तव मे ही उनमें इतिहास की इतनी सामग्नी भरी पडी है जो अपरिमेय ही कही जा सकती है। अब उनके अन्वेषण का अवसर आया है अत आपको इस विषय पर ध्यान देना चाहिए।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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