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________________ २१७ काटता, म्हे या वात न जाणता महारो मारग जमसी। साधु साध्वी यू दीक्षा लेसी । अने श्रावक-श्राविका होसी । जाण्यो आतमा रा कारज सारस्यां मर पूरा देस्यां। इसके बाद जब उनका मार्ग जमने लगा तो सगठन को प्राणवान् बनाने के लिए उन्होंने कुछ सूत्र दिए १. शिष्य परम्परा का उन्मूलन-सव शिष्य एक आचार्य के हो । २. समसूत्रता-समान कार्य पद्धति, एक ही मार्ग का अनुसरण । ३. अनुशासन । प्राचार्य भिक्षु मे विराट् व्यक्तित्व के वीज प्रारम से ही थे । गृहस्थ अवस्था मै जब वे सनुगल गए तब भोजन के समय सालिया गालियां गाने लगी। उन्होंने कहा-यह कैसा समादर? मैं तो भोजन कर रहा हूं और ये गालिया दे रही हैं । और वे भी भूठी। मैं कुरुप नहीं हू तो भी मुझे काला-कावरा बतलाती हैं और मेरा साला जो अगहीन है उसे अच्छा सुरूप बताती हैं। ऐसी झूठी गालिया में नहीं सुनना चाहता। यह कहकर वे उठ खडे हुए । आखिर लोगो ने वे गालिया वन्द करवाई तो वे पुन भोजन करने बैठे। __वे सदा से ही रूढियो के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने एक जगह पर्दे पर व्यग करते हुए कहा है "नारी लाज करै घणी, न दिखावं मुख न पाख । गाल्या गावरण वैठे जणा कपड़ा दिधा न्हाक ।" वे एक महान विचारक थे। अपनी विचार क्रान्ति को प्रकट करते हुए उन्होंने कहा१. सक्रिया सबकी अच्छी है, भले ही वह सम्यक् दृष्टि की हो या मिथ्या दृष्टि की। २. धर्म जीवन-शुद्धि का मार्ग है, वह आत्मा से होता है, धन से नही ।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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