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________________ प्रायः देहातो मे भी अनेक पढे-लिखे लोग मिल जाते है । विद्यालय भी इधर काफी है । पर विद्यालयो के भवनो की वास्तव मे ही बडी दुर्दशा है। स्कूलो मे फर्नीचर का तो अभाव रहता ही है पर मकान भी प्रायः कच्चे होते है । फर्श तो अधिकाश मकानो का ऊबड़ खाबड तथा अलिप्त ही रहता है । इससे प्राय मकान धूलि-धूसरित से रहते है । पक्के मकानों में कूडा-कर्कट इतना रहता है कि हम लोग निकालते-निकालते थक जाते हैं । सचमुच हम लोग जहाँ ठहर जाते हैं वह मकान एक बार तो साफ हो ही जाता है । आज जिस स्कूल मे हम ठहरे थे वह कूडे-कर्कट से भरा हुआ था। ऐसा लगता था मानो वर्ष भर में वहाँ सफाई करने की निषेधाज्ञा ही रही हो। हम लोग मकान को साफ कर ही रहे थे कि आचार्य श्री भी वहाँ पहुँच गए । हमे देखते ही कहने लगे-तुम लोग अभी तक कूडा निकालना ही नही जानते । रजोहरण को इतना जोर से घसीटते हो कि वह तो टूटे सो टूटे ही पर नीचे यदि कोई जीव आ जाए तो वह भी शायद जीवित नही बचे । और सच तो यह है कि इस प्रकार प्रायः कूडा भी ठीक ढग से नहीं निकल पाता । फिर रजोहरण को अपने हाथ में लेकर कूडा साफ करते हुए बोलेदेखो इस प्रकार से स्थान को साफ करना चाहिए । अच्छा तो यह हो कि कभी मैं सारा कडा-कर्कट साफ करके तुम्हे दिखाऊँ कि किस प्रकार से मकान साफ होता है । साध्वियाँ बडे परिश्रम से रजोहरण वनाती है और तुम लोग उन्हे सहज मे ही तोड देते हो यह अच्छा नहीं होता। तुम अपने हाथ से रजोहरण बनाओ तो तुम्हे पता चले रजोहरण कैसे बनता है ? प्रतिक्रमण के पश्चात् हम कुछ साधु लोग आचार्य श्री के उपपात में बैठे थे । विहार की बाते चल रही थी कि दो-तीन छात्र सामने आकर खड़े हो गए । कहने लगे-महात्माजी हमे भी कुछ उपदेश दीजिए।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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