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________________ २१० सबसे अच्छा धर्म मैं उसे ही मानता हूं जो व्यवहार में उतर आये। व्यवहार मे आकर धर्म किसी सम्प्रदाय विशेष का नही रहता और सच तो यह है कि पुस्तको का धर्म आखिर काम भी क्या आ सकता है ? काम वह धर्म ही आ सकता है जो जीवन में उतरे । वहुत-से लोग मुझे, 'पूछते हैं आप हिन्दू हैं या मुसलमान, ईसाई है या पारसी ? पर मैं अपने को क्या बताऊ ? मैं तो हिन्दू भी हू, मुसलमान भी हू, ईसाई भी हूं और पारसी भी। क्योकि मैं तो सभी धर्मों का उतना ही आदर करता हू जितना अपने-अपने धर्म का सभी लोग करते हैं । एक वार मैं 'अजमेर दरगाह' मे गया था। द्वार पर पहुंचा ही था कि एक पीर साहब सामने आये और वडे प्रेम से मुझे अन्दर ले जाने लगे। कहने लगे अन्दर आइये, पर एक काम आपको करना पडेगा। आप जरा अपना सिर खुला न रखें। थोडा-सा कपडा इस पर डाल लीजिये। मैंने पूछा-क्यो ? ___कहने लगे-हमारा यह नियम है कि नगे सिर कोई भी दरगाह में नहीं जा सकता। मैंने कहा- अच्छा । तव हम दरगाह मे नही जाएगे। हम न तो आपके उसूलो को भग करना चाहते हैं और न अपने उसूलो को। आपका यह उसूल है कि पाप नगे सिर किसी को नहीं जाने देते और हमारा यह नियम है कि हम सिर को ढकते नहीं। अत. हमारे दोनो के ही उसूलो की सुरक्षा के लिए मेरा अन्दर नहीं जाना ही उपयुक्त रहेगा। आगे हमारी बहुत सारी बातें हुई पर यहां मुझे इतना ही कह देना है कि मैं मुस्लिम धर्म का भी उतना ही आदर करना चाहता हूं जितना जैन धर्म का । तब मैं कैसे बताऊं कि मैं कौन है ? इसीलिए यह कह सकता हूं कि मैं तो हिन्दू भी हू, मुसलमान भी हू, ईसाई भी हू और पारसी भी है।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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