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________________ १९७ गुरू जो अपने पास पैसे रखे और तुम्हारी भी यह कमजोरी है कि तुम उन्हे गुरू माने हुए हो । वह तो अपना प्रभाव जमाने के लिए तुम्हे सव कुछ कहेगे पर तुम्हे तो आख खोलकर देखना चाहिए। बहन-तो क्या प्राचार्यश्री हमे अपना शिष्य बनाएगे? हम-क्यो नही? पर एक बात है गुरू बनाने के पहले तुम्हे उनका पूरा परिचय प्राप्त करना चाहिए। उनके क्या आचार-विचार है इसका अध्ययन करना चाहिए । फिर अगर तुम्हे वे अच्छे लगते है तो उन्हे गुरू रूप से स्वीकार कर सकते हो । और अच्छा तो यह हो कि तुम अपनी जाति के सभी लोग मिलकर प्राचार्यश्री से विचार-विमर्श करो। वह वेचारी उसी समय धूप मे दौडी और अपनी जाति के पाच-चार मुखियो के पास गई उनसे कहा-हमे आचार्यश्री के पास चलना चाहिए। थोडी देर मे वापिस लौटी तो हमने पूछा-क्यो क्या हुआ बहन । कहने लगी-अभी तक हमारे लोग इसके लिए तैयार नही है। उनके मन में है कि आचार्यश्री को गुरू बनाएगे तो वे हमे जरूर कुछ न कुछ खाने पीने की चीजें छुडाएगे । वह हमसे हो सकता नहीं। तब उनके पास जाने से क्या लाभ? हम-पर तुमको यह किसने कहा कि तुम आचार्यश्री को गुरू ही बनाओ । पहले विचार-विमर्श तो करो। वहन-पर हमारे लोगो मे अभी तक उनके पास जाने मे सकोच है। हम-यह सकोच तो मिटाना ही चाहिए। उसने फिर थोडा प्रयास किया पर चूकि आचार्यश्री को जल्दी ही आगे के लिए प्रयाण करना था। अत. वे लोग समय पर नहीं पहुच सके । इसीलिए प्राचार्यश्री से उनकी बातचीत नहीं हो सकी। फिर भी कुछ लोग आचार्यश्री के दर्शन करने के
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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