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________________ आज प्रवचन के बाद मैं भिक्षा के लिए जा रहा था । साथ मे एक भाई (रिखभचन्दजी फूलफगर) भी चल रहे थे। कुछ दूर चला हूगा उन्होंने अपनी जेब मे से एक डिबिया निकाली और मेरी ओर देखकर कहने लगे-करवाइए त्याग । मैं उनका आशय नहीं समझ पा रहा था। प्रत प्रश्न भरी दृष्टि से उनकी ओर देखता रहा। उसी क्षण उन्होने डिविया खोली और उसमे भरे "जरदे" तम्बाकू को नीचे गिराते हुए बोले-"जरदे" का। मेरा आश्चर्य और भी बढता जा रहा था । भला वह मनुष्य जो दिन भर अपने मुह मे तम्बाक रखता हो वह यकायक कैसे छोड सकता है ? मैंने प्रश्न किया-क्यो अाज यह वैराग्य कैसे आ गया? कहने लगे--प्रवचन मे आज प्राचार्यश्री ने क्या थोडी फटकार बताई थी ? मुझे उस समय बडी लज्जा आई। जब आचार्यश्री ने कहाकुछ महाशय तो ऐसे भी होते हैं जो यहा धर्म-स्थान मे आते समय भी अपने मुह मे जरदा रखकर आते हैं । सयोगवश मे भी उस समय जरदा खा रहा था । अत बात मेरे मन पर प्रभाव कर गई और मैंने सोचा बस इसी क्षण जरदे का त्याग कर दू । पर उस समय मेरे मुंह में जरदा था उसे वहा थूकने मे भी लज्जा आ रही थी । अत मैंने सोचा वाहर जाते ही इसे थककर आजीवन जरदा खाने का त्याग कर दूंगा। सचमुच आज मुझे ग्लानि हो गई है और मैं आपकी साक्षी से प्रतिज्ञा करता हूं कि जीवन भर कभी जरदा नहीं खाऊगा । मैंने कहा-त्याग भी क्या इतने उतावले से होते हैं ? कहने लगे-~मैंने जाने कितनी बार प्रयल किया
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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