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________________ आचार्यश्री-पर हम तो ट्रेन मे नही चलते । मैनेजर-ओहो मैं समझ गया, आप मोटर मे ही जाते है । आचार्यश्री नही, हम तो मोटर मे भी नहीं जाते, पैदल ही चलते है ? मैनेजर--तो क्या बाहर खडी मोटरो मे आपका सामान जाता है ? आचार्यश्री-नहीं। हम अपना सामान अपने कधो पर ही लेकर चलते है। मैनेजर-बाहर मोटरें क्यो खडी हैं ? आचार्यश्री-उनमे तो हमारे साथ चलने वाले यात्री लोग अपना सामान रखते हैं। मैनेजर-आप कितना सामान रखते है ? आचार्यश्री--बस इतना ही जितना आप अभी हमारे पास देख रहे है। यही हमारा सारा सामान है । मैनेजर-क्या इतने से आपका काम चल जाता है ? आचार्यश्री-देखिए काम तो चलता ही है। पहनने, अोढने तथा बिछौने का सभी काम इतने कपडो से चल जाता है। वे आचार्यश्री के उपदेशो से तो प्रभावित थे ही, आज इतनी कठिन साधना का परिचय पाकर एकदम गद्गद् हो गये और श्रद्धा से उनका सिर स्वय ही नत हो गया। - शाम को हम लोग बनारस पहुँच गये। अब तक का मार्ग हमारे लिए अपरिचित था । अब तो आगे का मार्ग परिचित ही है । बनारस हम पहले भी आए हुए है । अत यहाँ के लोगो से काफी परिचय है। इसीलिए शाम को काफी लोग एकत्रित हो गये। समागत लोगो मे अधिकतर विद्वान् ही थे, जिनमे वयोवृद्ध पडित गिरधर शर्मा, राजा प्रियानन्दजी, पडित कैलाशचन्द्रजी, प्रसिद्ध पुस्तक प्रकाशक श्री मोतीलालजी,श्री मंगलदेव
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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