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________________ १-३-६० बीदासर मे आज आचार्यश्री वृहत् जुलूस के साथ मुणोतो के नोहरे मे पधारे । मुनिश्री नेमीचन्दजी तथा साध्वीश्री सज्जनश्रीजी ने जिनकी जन्मभूमि यही है अपने-अपने भाव कुसुमो से आचार्यश्री का अभ्यर्थन किया। अभिनन्दन पत्र पढते हुए एक भाई ने कहा-हम जिनेश्वर देव से प्रार्थना करते है कि वे प्राचार्यश्री को युग-युग तक हमारे बीच मे प्रकाश-रश्मि के रूप में विद्यमान रखे। आचार्यश्री ने इस विषय पर स्पष्टीकरण करते हुए कहा-हमारा कतई यह विश्वास नहीं है कि जिनेश्वरदेव हमारे जीवन की गतिविधियो मे किसी प्रकार का हस्तक्षेप करते है । अत हम उनसे ऐसी अभ्यर्थना करना भी आवश्यक नहीं समझते । अपना प्रवचन करते हुए ग्राचार्यश्री ने कहा-अाज ऐसा लगता है जैसे मैं अपने घर मे आ गया है । वैसे पराया मेरे लिए कोई नही है पर इस भूमि से जैसे हमारे सघ का चिर-सवन्ध रहा है । यहा के करण-करण मे सघ के प्रति भक्ति है और पूज्य कालूगरिणजी की माताश्री छोगाजी की भी यह तपस्या भूमि रही है । मेरी ससारपक्षीया माता बदनाजी ने भी इसे अपनी तपोभूमि बना लिया है। वृद्धावस्था में उन्हे समाधि मे रखना मेरा कर्तव्य है। अत भले यहा मैं बहुत दिनो से पाया हू तथा वदनाजी के उपालम्भ भी सह लूगा, पर यहा आकर मैंने अपने घर में आने का-सा अनुभव किया है। मातुश्री वदनाजी तो आज फूली नहीं समा रही थी। ७५ वर्ष की
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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