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________________ २५-२-६० आज भी वही दस मील का बिहार था । यहा मुनिश्री किस्तूरमलजी तथा मुनिश्री जयचन्दलालजी स्थिरवास मे हैं । मुनिश्री किस्तूरमलजी का पैर टूट जाने के कारण कई वर्षों से चलने में असमर्थ हैं तथा मुनिश्री जयचन्दलालजी की आखो की ज्योति सदा के लिए विलीन हो गई। इसीलिए चार साधु मुनिश्री नवरत्नमलजी के नेतृत्व मे गत वर्ष उनको सेवा मे थे । सचमुच सेवा करना भी एक असि धारा व्रत है । मुनिश्री किस्तूरचन्दजी तो बिना सहारे के उठ भी नही सकते। उनके सारे दैहिक कार्य साधु के सहयोग से ही होते है । मुनिश्री जयचन्दलालजी भी चलने मे पर निर्भर हैं। क्योंकि शास्त्रीय विधि के अनुसार विना देखे तो कोई चल नही सकता और इसलिए कि मुनिश्री जयचन्दलालजी अपने पैरो के नीचे आने वाले किसी प्रारणी या पदार्थ को देख नही सकते, उनको दूसरो के सहारे ही चलना पडता है । पर दोनो साधुनों की सेवा व्यवस्था ऐसी सुधर है कि जितनी शायद कही-कही पुत्र भी पिता की नही करते । तेरापथ की यह सेवा भावना ही सभी सदस्यो के मन को भविष्य की चिंता से मुक्त रखती है । मुनिश्री नवरत्नमलजी ने उनकी सेवा का सुयश तो पाया ही परन्तु साथ ही साथ यहा के विद्यार्थियों मे भी उन्होने प्रशसनीय कार्य किया है । रात्री के शात वातावरण मे पचासो विद्यार्थियो ने समवेत स्वर मे अपना कण्ठस्थ तत्त्वज्ञान आचार्यश्री को नमूने के तौर पर सुनाया । जिसे सुनकर प्राचार्य श्री बहुत ही प्रसन्न हुए ।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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