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________________ १५२ बच्चो की एक टोली मेरे साथ हो गई। पाच चार बच्चे थे। सारे छह सात वर्षों से ऊपर नहीं थे। एक बच्चे के कधे पर प्लास्टिक की केतली लगाई हुई थी । वार-बार वे उसे बदल रहे थे। प्यास लगने पर एक ने पानी पीया और अपने साथियो को भी पिलाया। केतली खाली हो गई । सोचने लगे चलो बोझ कम हुआ ! पर आगे जब प्यास लगी तो कण्ठ सूखने लगे । अब पूछने लगे गाव कितनी दूर है ? जो भी कोई मिलता उससे ही पूछते । थकने पर मनुष्य की यही दशा होती है । सशक्त मनुष्य किसी से कुछ नहीं पूछता। कमजोर-थका हुआ ही पूछता है गाव कितनी दूर रहा । फिर जब दूर से गाव दीखने लगा तो कहने लगेअरे । वह गाव आ गया। पर गाव पाया था या वे पाए थे? कुछ बहिनें तो इतनी थक गई कि आगे चल ही नहीं सकी । इला बहन और वसन्त वहन उनमे प्रमुख थी। वे गुजराती वहने राजस्थान की रेती को क्या जाने ? पहले तो खुशी-खुशी मे साथ हो गई पर अव चला नहीं गया तो छाया देखने लगी। छाया वहा कहा थी? बहुत चलने के बाद कभी कोई जगली वृक्ष-खेजडा आता था। वह भी रास्ते से हटकर । वह भी छोटा सा । बैठने के लिए अपर्याप्त । उसके भी नीचे काट । पर जो थक जाता है वह अच्छा बुरा कुछ भी नहीं देख सकता । प्रत वे भी बैठ गई। साधुनो ने कहा-अव तो गाव बहुत दूर नहीं है। पर आश्वासन कब तक काम दे सकते है। जो स्वय हार जाता है उसे प्रोत्साहन देकर जिताना वडा कठिन है। दुलरासर मे मेला-सा लग गया। चारो ओर मनुष्य ही मनुष्य दीख रहे थे । मोटरो और कारो का जमघट लग गया था। मध्याह्न मे प्राचार्यश्री ने समागत लोगो तथा ग्रामीणो को उपदेश दिया और करीब तीन बजे वहां से फिर विहार हो गया।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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