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________________ १४६ धीरे-धीरे आ रहे थे और आचार्यश्री चार मील प्रति घण्टा की गति से सरदारशहर की ओर बढ रहे थे। इधर क्षण-क्षण मे तपस्वी मुनि की स्थिति चिंताजनक हो रही थी। प्रतीक्षा में मिनट भी घण्टो जैसी लगने लग जाती है। बारह बज चुके थे। तपस्वी की नाडी ने चलने से इन्कार कर दिया था। सबके मन में सशय स्थान पाने लगा कि वे अतिम सास मे प्राचार्यश्री को अपनी आखो की पुतली में प्रतिविम्बित कर सकेंगे या नहीं ? पर साढे बारह बजे तो प्राचार्यश्री इस भयकर गर्मी में पसीने से लथपथ होकर तपस्वी के सामने पहुच ही गये । आते ही आचार्यश्री ने कहा-लो घोर तपस्वी । हम तुम्हारे लिए आ गये है। एक बार आख तो खोलो। यद्यपि तपस्वीकी वाह्य चेतना लुप्त हो चुकी थी पर अन्तश्चेतना उनमे थी, यह स्पष्ट था । उन्होने एक-दो बार आख खोली और फिर सदा के लिए बद कर ली। उनके प्राण-पखेरू मानो आचार्यश्री के दर्शन के लिए ही रुके हुए थे । आचार्यश्री के आते ही वे अज्ञात स्थान की ओर उड गये। अतिम समय मे उनके मुख-मण्डल पर शाति खेल रही थी। वह व्यक्ति जिसने अपने जीवन मे अनेक लोगो को तपस्या की ओर प्रेरित किया था, आज एक वीर सैनिक की भाति जीवन और मृत्यु के रण मे सदा के लिए सो गया। रात्रि में प्रार्थना के समय आचार्यश्री ने उनकी सफलता को इगित कर एक दोहा कह उन्हे श्रद्धाजलि समर्पित की भद्रोतर तप ऊपरे, अनशन दिन इकवीस । घोर तपस्वी सुख मुनि, सार्थक विश्वाबोस ।।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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